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Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre
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- कुमारी को दिखाया, देखते ही बड़ी हर्षित हुई, स्नेह दृष्टि से बार २ देखने लगी । राजा उस कुमारी का अनु श्री० अष्ट प्रकार राग देख कर प्रसन्न हुआ और विचार करने लगा, हंसनी का प्रेम हंस पर ही होता है परन्तु हंस को छोड़ कर ।
* कौए पर प्रम नहीं रखती। इस प्रकार योग्यता जान कर अपने मन्त्रियों को बुलाया और पद्मपुर में पद्मरथ राजा के पास उनको भेजा।
__ मन्त्री लोग भी शीघ्र ही पद्मपुर पहुंचे और पद्मराजा को प्रणाम कर कहने लगे, हे महाराज! हमा सुरपुर नगर के स्वामी की ओर से भेजे हुए आपके पास आये हैं । सूरविक्रम राजा ने यह समाचार हमारे साथ कहलाये हैं कि मेरी सर्वांग सुन्दरी. गुणवती विनयश्री नामक पुत्री है वह आपके पुत्र जयकुमार को दी है। ऐसे । वचन सुनकर राजा सन्तुष्ट होकर बोला हे मन्त्रियो। ऐसा कौन संसार में होगा जो आई हुई लक्ष्मी को निषेध करे ? यह राजकुमारी लक्ष्मी समान है इसका लाभ हमारे अत्यन्त शुभदायक है। जयकुमार पिता के वचन सुन
पूर्वस्नेह से सन्तुष्ट हुश्रा, याद उस राजा ने मन्त्रियों का सन्मान कर विदा किया । वे भी विवाह का दिन कहकर । अपने नगर में आगये और अपने स्वामी को सव वृत्तान्त कह दिया।
पद्मरथ राजा ने अच्छा मुहूर्त देख कर शुभ दिन में जयकुमार को विवाह निमित्त भेजा वह भी बड़े
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