Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 88
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre www.kobatirtm.org Acharya Sh Kailassagar Gyanmandi F المعهد अनन्तर राजा ने मुहर्स दिखा कर देश देशान्तरों के राजकुमारों को बुलावा भेजा । मनोहर, विशाल स्वयंवर मण्डप बनवाया, और वहां भिन्न २ नामांकित सिंहासन स्थापन करवा दिये । राजकुमार आ आकर उन पर विराजमान हुए । राजकुमारी भी शृङ्गार कर स्वयंवर मण्डप में आई. सखियों का परिवार और प्रतिहारी (परिचय कराने वाली)साथ थी । सब कुमारों पर इसकी दृष्टि पड़ी परन्तु कोई भी इसको रुचा नहीं। प्रतिहारी जिस २ राजकुमार के गुण और देश समृद्धि का वर्णन करती है, उसमें दोष निकालती, विरक्त होकर अगाडी चल देती, परन्तु किसी कुमार को अङ्गीकार नहीं किया। राजा ने कुमारी का चित्त चिरक्त जान कर सब राजकुमारों का चित्रपट (तस्वीर वाला कपड़ा) तैयार करा कर राजकुमारी को दिखाते २ अभिप्राय लिया, परन्तु उसने अपनी दृष्टि फेर ली। उसका मन किसी भी राजकुमार पर अनुरक्त नहीं हुआ। शास्त्र में कहा है-जिस प्राणी के साथ पूर्वभव स्नेह हो वह उस पर ही अपना स्नेह बढ़ाता है अन्य पर नहीं। राजा अतीव चिन्तातुर हो चित्त में संताप रखता हुआ विचार करता है कि क्या इस स्वयम्बर मंडप में कुमारी के लिए बर विधाता ने पैदा ही नहीं किया ? इतने में राजा ने जयकुमार का रूप चित्र में लिखवा कर . For Private And Personal use only

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