________________
Shin Mahavir Jain Aradhana Kendre
www.kobatirtm.org
Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir
निर्वि
बोली, हे भाई! तू धन्य है जिसके ऐसी बुद्धि उत्पन्न हुई है। शास्त्र में कहा है जो प्राणी अल्प मति और हीन पुण्य होता है उसको जिनपूजा की मति नहीं होती है।
इस प्रकार वे दोनों भाई बहिन श्री जिनराज के चरण कमल की शुभषा और शुभ कार्य करते २ समय बिताते थे, अपने नियम के पालने में पूर्ण तत्पर रहते थे। अन्त में शुभ परिणाम से मरण पाकर दोनों ही सौधर्म देवलोक में देवता उत्पन्न हुए। वहां श्री जिनराज की पूजा के प्रभाव से प्रधान देव सुख भोगने लगे।
यहां एक पद्मपुर नामक नगर है उसका राजा प्रतापी, तेजस्वी और पराक्रमी पद्मरथ नामक था, वह । सुख शान्ति से राज पालता था। उसके एक पद्मा नाम की पटरानी है उसकी कुक्षि में देवलोक से च्युत होकर
गुणधर का जीव पुत्रपने उत्पन्न हुआ। बड़े उत्सव के साथ उसका नाम जयकुमार दिया। वह कुमार कई धाइयों त से लालन पालन किया जाता हुआ पांच वर्ष का हुआ । अनन्तर गुरु के पास सकल कला और आगम सिखाये*
गये । वह सर्व विद्या में निपुण होकर यौवनावस्था को प्राप्त हुआ। शरीर की कान्ति और स्वाभाविक गुणों से त साक्षात् देवकुमारवत् ज्ञात होता है।
इन्हीं दिनों सुरपुर नामक नगर में सूरविक्रम नामक राजा राज्य करता धा, उसकी स्त्री राजवल्लभ
For Private And Personal Use Only