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श्री मष्ट
पूजा
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- कमलों की सेवा करते रहे। इस प्रकार राजा चारित्रपाल कर अन्त में शुभ ध्यान से अनशान पालन कर सौधर्म , * देवलोक में गया और रानी मुखमती भी मर कर उसी देवता की देवी उत्पन्न हुई।
वहां देवताओं के सुख भोगकर वह सुखमती सौधर्म देवलोक से च्युत होकर इसी भरतचत्र में हस्तिनापुर नगर में जितशत्र राजा की रानी की कुचि में कन्या उत्पन्न हुई। सुन्दर रूप और विशाल नेत्र जान
कर पिता ने उसका नाम मदनावली रक्खा। चन्द्रमा के कला के समान और कल्पलता के तुल्य प्रति दिन में Dबढ़ती हुई, शरीर के सौभाग्य से यौवनावस्था को प्राप्त हुई।
उसको विवाह योग्य जान कर राजा ने स्वयम्बर रचना कराई वहाँ कई देश देशान्तरों से विधाघर किन्नर और अन्य राजाओं के कुमार इकट्ठहुए । उन सब को छोड़ राजकन्या ने सुरपुरी नगरी का वासी राजा
सिंहध्वज को बरमाला पहिनाई । मदनावली का विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ, राजा ने उस को सर्व अन्तःपुर त में बल्लभ की और अपने प्राणों से भी प्यारी समझने लगा। बलदेव वासुदेव की तरह परस्पर अत्यन्त स्नेह हुआ।
राजा ने ऐसा उपकार मन में जाना कि इस प्रिया ने बड़े २ विद्याधर नृपतियों को छोड़ कर स्वयंवर मंडप में मुझ " पादचारी को अङ्गीकार किया, इससे वह बहुत प्रीति रखता था।
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