________________
Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirtm.org
Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir
जाना। अपनी आत्मा की निन्दा करने लगी। जो इस शुक ने मुझको अपने पूर्व भव का वृत्तान्त कहा यदि यहD ही मुझे इस कर्म से छूटने का उपाय बतावे तो अच्छा हो क्योंकि मैंने मनुष्य भव पाया है इसको धर्म से सफल करना योग्य है इस प्रकार विचार करने लगी।
तब शुकी बोली हे नाथ ! वह मदनावली कहां है ? तब शुक ने कहा, यह तुम्हारे सामने वृक्ष के त नीचे पलँग पर बैठी है, यह ही मदनावली रानी है। इसने पूर्व भव में मूर्खता से साधु के शरीर से घुणा की।
थी उसका यह फल भोगती है। यदि यह श्री जिनराज की गन्ध पूजा दिन में तीन बार (प्रातः, मध्यान्ह, त शायंकाल)भक्ति से करे तो सात दिन में इसका दुःख दूर हो जाय। यह वचन शुक के सुनकर रानी प्रसन्न
हुई और पक्षी का वचन हितकारी जाना, और उस कीर के वचन अत्यन्त प्रिय लगे। वे दोनों पक्षी इस प्रकार । उसको उपाय बताकर शीघ अदृश्य हो गये।
अब मदनावली आश्चर्य को प्राप्त हुई मन में विचार करने लगी यह कोर युगल मेरे चरित्र को कैसे जानता है ? जब मेरे शरीर से यह वेदना चली जाय तो घर पर जाऊं और राजा से मिलकर प्रसन्न हूँ। जब वहां कोई ज्ञानी मुनीश्वर आवेगा तब इस शुक चरित्र की बात पूछ कर संदेह निवृत्त करूंगी। ऐसा विचार कर ।
For Private And Personal Use Only