________________
S
a
lain Aadhaa keras
Acharya Sha Kaassaganan Gyanmand
श्री अष्ट
ही महेन्द्र नामक चौथे देवलोक में देवता उत्पन्न हुए। वहां देवमुख भोग कर देव आयुष्य पूर्ण कर वहां से व्युत । प्रकार हो भरत क्षेत्र में क्षेमपुर नगर में पिता का जीव पूर्णचन्द्र नामक राजा हुआ और उसी नगर में एक सेठ क्षम
कर नामक धनिक उसके विनयवती नाम की स्त्री थी, उसके गर्भ से पुत्र का जीव पुत्रपने उत्पन्न हुआ। सेठ " बहुत प्रसन्न हुमा, पुत्र के शरीर से धूप समान गन्ध प्रकट हुई है जिससे उसके परिवार और नगर के लोगों को
पड़ा प्रिय लगता है। पिता ने इसके अनुसार धूपसार नाम दिया । पुरवासी गन्ध के लोभ से अपने वस्त्रों को - इसके शरीर पर लगाकर पहिरने लगे।
राजा राज सभा में बैठा हुमा आश्चर्य से लोगों से पूछता है तुम्हारे वस्त्रों में ऐसा गन्ध कहां से मैं आया? यह गन्ध देवलोक में भी दुर्लभ है। वे नागरिक राजा के वचन सुन कर कहते हैं, हे स्वामी! यह गन्ध
सेठ के पुत्र धूपसार के शरीर का है। उसके शरीर के स्पर्श से वस्त्रों में भी यह गन्ध प्रगट हो जाती है। इस यात 7 से प्रसन्न हो राजा रानी भी उसके शरीर से स्पर्श करा कर वस्त्र धारण करते हैं। यह सब श्री जिनराज की धूप पूजा का प्रभाव है।
राजा पूर्वभव के समान इस सेठ कुमार पर अहंकार धारण करता है। राजा ने द्वेषके कारण उस सेठ के पुत्र धूपसार को बुला कर पूषा, हे कुमार! तू कौन से धूप का गन्ध पास रखता है ? सत्य कह । कुमार ने '
حلحلال ا لحجاج
For Private And Personal Use Only