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हे पिये! तू वर मांग, मैं तुझ को इच्छित देता हूँ। ऐसा सुन रानी ने कहा-हे स्वामिन् ! जब अवसर होगा तब मांग लूगी, यह वर आप जमा रक्खें । राजा ने भी प्रतिज्ञा कर ली।
एक समय में वह रति सुन्दरी रानी अपने पुत्र की इच्छा करती हई कुलदेवी से प्रार्थना करती है-हे. कुलदेवते! आप मुझको पुत्र दीजिये, मैं जय सुन्दरी के पुत्र को बलिदान देऊंगी। एवं मनोरथ करती हुई भवि- । । तव्यता के कारण दोनों रानियों के दो पुत्र हुए। वे कुमार शुभ लक्षण सहित और माता पिता को आनन्ददायी
हैं । रतिसुन्दरी अपने पुत्र जन्म से अत्यन्त प्रसन्न हुई और चित्त में विचार करने लगी, यह पुत्र कुल देवता ने। 1 दिया है। अब जयसुन्दरी के पुत्र को पूजा पूर्वक बलिदान करूंगी। इसका उपाय यह है कि राजा ने बरदान की
प्रतिज्ञा की है, वह इस अवसर पर लेना उचित है । सब यात स्वाधीन हो जायगी । ऐसा विचार कर रानी ने , अवसर पाकर राजा से कहा-हे महाराज ! आपने पूर्व प्रतिज्ञात वर दिया था वह मुझे दीजिये।
यह वचन सुन राजा बोला-हे प्रिये ! मैं अधिक क्या कहूँ यदि प्राण मांगे तो भी देने को तैयार हूँ। ऐसा कह कर उसने अपना बड़ा राज्य पांच दिन तक रानी को दे दिया और स्वयं राजा अपने महल में रहने लगा। रानी ने राजा का महाप्रसाद समझ कर राज्य का पालन करने लगी। एकदा रात्रि के पिछले प्रहर में
कनिकम
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