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बुद्धिमान मन्त्री ने बुद्धि के उपाय से सब रानियों को बुलाया और रात्रि का यक्ष सम्बन्धी वृत्तान्त कहा। तय सब रानियों ने अपने २ जीवन के लोभ से मन्त्री को कुछ भी प्रत्युत्तर नहीं दिया, लज्जा से अधोमुख हो कर
खड़ी रहीं। इतने में पटरानी रति सुन्दरी का मुख कमल प्रफुल्लित हुआ, पूर्व भव का स्नेह जान कर खड़ी होकर * मन्त्री से बोली-हे मन्त्रीश्वर यह मेरा प्राणप्रिय भर्ता है यदि इनके जीवन के लिए मेरा शरीर काम आवे तोमेरा 5 बड़ा सौभाग्य है, यदि राजा की आयु बढ़े तो मैंने संसार में सब कुछ पा लिया, अतः इस शरीर का उतारा करो और राजा को बचाओ।
ऐसे पटरानी के बचन सुन मन्त्री ने राजभवन के गवाक्ष के नीचे ही भूमि पर काष्ठ का संचय कराया त और अग्नि कुण्ड में ज्वलित अग्नि प्रवेश की। वह रानी प्रसन्न हुई शृङ्गार कर कुल देवता को नमस्कार कर इस
प्रकार वचन कहने लगी-हे देवताओ! आप इस राजा का जीवन बढ़ाओ, मैं अपना देह इसके लिये अग्नि-कुण्ड । में होम देती हूँ। ऐसे रानी के वचन सुन राजा दुःखी हुआ बोला-हे प्रिये ! तू मेरे लिए अपना देह मत छोड़, मेरे जो पूर्व जन्म के कर्म हैं उनको मैं ही भोगूगा । अपने अशुभ कर्म बिना भोगे नहीं छूटते हैं।
तय रानी पैरों में प्रणाम कर राजा से आग्रह के साथ कहने लगी-हे प्रियतम ! ऐसा मत कहो, आपके लिए मेरा जीवन जावे तो सफल हो जाय, इसलिये मैं अपने शरीर का उतारा निश्चय करूगी। यह कह कर
الهلال
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