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के तेजस्वी यालक को गोद में लेलिया । उस पुत्र के सामने देखने लगी और कहा महिले कमवश हमारे पुत्र का विरह था अब यह ही हमारा पुत्र देव ने दिया है। ऐसे कह कर दोनों राजा-रानी अपने नगर में गये।
वहां उसने अपने नगरमें बालक का बड़े ठाठ से जन्मोत्सव किया । वह राजकुमार शुक्ल पक्षके चन्द्रमा की कला के समान बढ़ने लगा प्रतिदिन अनेक धाइयों से लालन-पालन किया जाता था, सुख से रहता था। गाँ
इधर रानी रतिसुन्दरी ने विद्याधर के दिये हुए किसी मृत बालक को लेकर देवी के मन्दिर में जा कर । बलिदान दिया और शिला पर पछाड़ा । उसको मरा हुआ जान बड़ी सन्तुष्ट हुई। फिर वहां से अपने भवन में
भाई और अपना मनोरथ पूर्ण समझा और सुख से रहने लगी। जयसुन्दरी दुख से दिन बिताती थी। उधर, ३ विद्याधर राजाके पास वह कुमार बड़ा हो गया उसका नाम मनदकुमार रक्खा है। जब वह यौवना अवस्था को
प्राप्त हुआ तब कई विद्याओं को सीखा और विद्या बल से एक विमान बनवाया। विमान में बैठकर एक समय आकाशमार्ग से अनेक पर्वत, नगर, ग्रामों को देखता हुआ अपनी जन्मभूमि में पाया। उसी नगर के राजभवन के गवाक्ष से पुत्र वियोग से विलाप करती, शोक समुद्र में डबी हुई, नेत्रों से पानी की धारा बहाती हुई, अपनी माताको देखा और पास आया । रानी ने भी कुमार को देखा और स्नेह से स्तनों से दुग्ध धारा निकलने लगी।
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