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5 (इन्द्र) पद प्राप्त किया-दूसरी रानी ने भी दीक्षाली और सुद्ध चरित्र पालन कर उसी देवलोक में पहुंची। वे
दोनों माता-पुत्र भी वहाँ ही गये। इस प्रकार चारों जीव ने वहां से च्युत होकर मनुष्यावतार लिया-अन्त में अक्षत पूजा के प्रभाव से केवल ज्ञान प्राप्त कर मुक्ति गये।
॥ इति श्री पूजा माहात्मये तृतीयाक्षत पूजा निमित्त शुकमिथुन कथानकम् तृतीयं समाप्तम् ॥
अथ चतुर्थ पुष्प पूजा विषये कथा माह । गाथा % पुज्जइ जो जिण चन्द, तिन्हिबि संझाओ पवर कुसमेहिं॥
सो पावइ वर सोक्खं, कमेण मोक्खं सया सोक्खम् ॥१॥ संस्कृतच्छाया % पूजयति यो जिनचन्द्र, तिसृष्वपि संध्यासु प्रवर कुसुमैः ॥
स प्राप्नोति वर सौख्यम्(१), क्रमेण मोक्ष सदा सौख्यम् ॥१॥ व्याख्या=जो प्राणी मनुष्यावतार लेकर श्री वीतराग भगवान् को उत्तम विविध ऋतु में उत्पन्न हुए कई प्रकार के पुष्पों से पूजता है वह मनुष्य इस भव में प्रधान धन, भोग, संपदा के सुख और परभव में शाश्वत सुख वाले मोक्ष को पाता है।
(१) सुखमेव सौख्यं स्वार्थेभ्यम् प्रत्ययः ।
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