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के लिये उस विद्याधर नगर के पास पहुंचा । वह राजकुमार अपनी माता को लेकर अपने नगर के बाहर उद्यान में आम की सघन छाया में बैठ गया, मन में आश्चर्य करने लगा। वह देवता भी उसी उद्यान में
आम्र वृक्ष को शाखा पर वानर बानरी का रूप बना कर बैठ गया। उनमें से बानर ने वानरी से कहा हे प्रिये! । । यह इष्ट दायक तीर्थ है इसलिये इस कुण्डके जल में पड़ने से तियंच भी मनुष्य हो जाता है और मनुष्य तीर्थ
के प्रभाव.से देव हो जाता है, इसमें सदेह नहीं । इसलिये अपने दोनों भी मनुष्य हो जायगे, फिर जलमें स्नान , । कर देवता होजायगे। जैसे ये दोनों स्त्री पुरुष बैठे हैं वैसे अपने भी पुरुष हो जायगे। यह सुन कर वानरी Th बोली-हे प्रियतम! इस पापिष्ठ का नाम कौन लेवे ? जो स्त्री बुद्धि से अपनी माता को हरण करके ले आया है, ।
ऐसे पापी का नाम लेने से तुम भी पाप में सम्मिलित हो जाओगे। जैसे इस मनुष्य का जन्म निरर्थक है वैसे तुम्हारा जन्म भी निरर्थक हो जायगा।
ऐसे बानरीके वचन सुनकर कुमार और रानी दोनों विचार करने लगे। उनमें से कुमार मनमें कहता है, क्या यह मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूँ? स्नेहवश प्रसन्न होता हुआ फिर मनमें विचार करता है, इसका 4 मेरा स्नेह अपूर्व है जिस से यह मेरी पूर्व जन्म की माता जानी जाती है । इसका मेरा स्नेह पूर्ण हो गया । रानी
भी विचारती है क्या यह मेरा पुत्र है? मेरे उदर से उत्पन्न हुआ है? इस प्रकार हृदय में ऊहापोह करने लगी।
الللهعلك
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