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वहांसे देवायु भोगकर च्युत होकर उस शुकराज का जीव हेमपुर नगर में हेमप्रभ नामक राजा हुआ। उस शुकी का जीव भी देवलोक से च्युत होकर उसी राजा की जयसुन्दरी नामकी रानी हुई। मो अंडे से शुकी हुई थी उसने बहुत संसार में भव किये । अन्त में वह उसी राजा की दूसरी रानी रतिसुन्दरी नाम की हुई,
उस राजाके और भी पांचसौ रानियां थी । स्नेह सबके साथ था परन्तु पटरानी वे दोनों ही थी, तथा रतिसुन्दरी । और जयसुन्दरी राजा के अति वल्लभा थीं। उनके साथ पांच प्रकार (शब्द रूप, रस, गन्ध और स्पर्श) का L विषय भोग सुख भोगता हुअा राज्य सुख भोगता था।
अब उस राजा के शरीर में कोई समय असह्य ज्वर उत्पन्न हुआ, उससे अत्यन्त ताप पीड़ा भोगता है। उन रानियों ने बावन चंदन घिस २ के लगाया तथापि शान्ति नहीं हुई। पृथ्वी में लोटता रहता है, महावेदना से विलाप करता रहता है, अशन पान भी नहीं लेता है । इस प्रकार पीड़ा भोगते २ तीन गुणित सप्ताह अर्थात् इक्कीस दिन व्यतीत हो गये । राजा के पास कई वैद्य, यन्त्रज्ञ,मन्त्रवादी, तन्त्रवित्, चिकित्सक आये और कई उपचार किये, परन्तु किंचिन्मात्र भी लाभ न हुआ। तब निराश हो अपने २ घर गये।
अब जब राजा को कुछ शान्ति न हुई तव बुद्धि निधान मन्त्री ने नगर में उद्घोषणा कराई, और पटह भूयाया। जगह २ सदावर्त शुरू किये, विविध प्रकार दान दिये गये, श्री वीतराग के मन्दिर में भी कई प्रकार की .
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