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॥१८॥
स्तम्भित हो गया। चित्र में पुतली की भांति खड़ा २ देखता है पर कुछ कर सकता नहीं। राजा भीतर क्रोध से। प्रकार
जलता, संताप से तपता, पूर्ण व्याकुल हो गया। उसके सुभटों ने वावना चंदन से शरीर में विलेपन किया। पूजा ।
यह देख विनयधर कुमार हंसकर बोला, हे सुभगे ! इस शरीर पर तो अशुचि रुधिरादिक लेपन करना उचित है। जिस से स्वामीके ताप शान्ति हो। शीतल चंदनादिक से कुछ प्रयोजन नहीं, ऐसे विकट वचन कुमार के सुनकर यक्ष प्रकट हुआ और बोला, हे वत्स ! यह तुम्हारा पिता है ऐसा अविनय मत करो। फिर राजा से कहा हे राजन् ! यह तुम्हारा ही पुत्र है आपने पूर्व भव में बैरानुबंधी कर्म उपार्जन किया उसको छोड़ो। जिसको तुमने र देषवश बालकपन में सेवकों से जंगल में छुड़वाया था, यह वही है।
ऐसे यक्ष के अमृत समान वचन सुन राजा अत्यन्त हर्षित हुश्रा, कुमार ने आकर प्रणाम किया, क्षमा । D, मांगी और कहा हे पिता जी! अविनय से जो दुष्कृत हुआ वह क्षमा कीजिये। उसके पिता नरपति सुभट सहित बजसिंह राजा भी उस पुत्र को छाती से लग कर शिर चुबन कर अत्यन्त स्नेह से कहने लगा । हे पुत्र ! जो मैंने तुम्हारे लिये देष के कारण दुश्चेष्टा की उसको क्षमा करो। इसी अवसर में खबर लगते ही वह माता कमला भी वहां आई। दूर से पुत्र को देखते ही उसके स्तनों से दुग्ध को धारा निकलने लगी। पुत्र से आलनिन . किया, और पुत्रको शिर पर पुचकारा । जैसे नई प्रसूता गौ बछड़ा से प्यार करती है वैसे गोद में प्यार से लेकर ॥ १
للملح
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