Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 59
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Sh Kailassagansar Gyanmandir .२३॥ हे भगवती! मैं राजभवन में प्रवेश ही नहीं कर सकती तो यह औषधीयलय किस तरह हाथ में दे सगी? श्री भए। ऐसे रानी के वचन सुन तापसी बोली-हे वत्से! यदि ऐसी बात है तो इस मन्त्र को ग्रहण कर इसके ध्यान से * जा तेरा सौभाग्य खुल जायगा। . ऐसा कह कर अच्छे मुहर्स और अच्छे दिन में उस परिवाजिका ने रानी को बड़े गुप्त प्रकार से मन्त्र दिया और विधि बतलाई। रानी भी सादर ग्रहण कर उसका ध्यान, पूजा पाठ एकाग्रमन से करने लगी। जैसे २ विधि पूर्वक उसका ध्यान पूजा करती थी, वैसे २ राजा का प्रेम बढ़ने लगा । राजा ने प्रतिहारी को भेजा और कहा, रानी को आदर से राजभवन में लायो । प्रतिहारी ने आकर रानी से कहा हे स्वामिनी ! तुम्हें राजा का नाँ आदेश हुआ है। रानी ने प्रार्थना की-हे भद्र ! राजा ही मेरे भवन में आये, ऐसा प्रयत्न करो। उसने वैसा ही किया, और कहा आज अवश्य तेरे भवन में राजा आवेगा, तू किसी बात का विकल्प मत करना। यह सुन रानी अच्छा शृङ्गार कर आभूषण धारण कर परिवार सहित बैठी है । राजा बड़े सन्मान के साथ आया और हथिनी । पर चढ़ा कर अपने राजभवन में ले गया । बड़े आदर से पटरानी बनाई । अन्य रानियों को दौर्भाग्य दिया । उस राजा के साथ वह श्रीकान्ता रानीवांच्छित अर्थ सुख भोग भोगने लगी। उसने अपनी इच्छानुसार परिवार,परिजनों त को बहुत दान दिया और जिस पर वेष था उसको ग्रहण करा कर विपत्ति दी। ॥ २३॥ لجلالحاد कर्वजनिक For Private And Personal Use Only

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