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PayPataa
1 मुझे भी प्राण दान दो। यह नहीं जीवेगी तो मेरे भी शरीर का अनि संस्कार कर दो। ऐसा राजा का निश्चय : 1 जान कर तपस्विनी बोली, हे राजेन्द्र ! यदि ऐसा है तो मैं आपकी प्रिय रानी को अभी जीवित करती हैं। आप क्षणमात्र ठहरो, कायरपना लाकर उतावल मत करो। इन लोगों के देखते २ प्रत्यक्ष जीवित दान देती हूँ।
ऐसे वचन सुन राजा चिता से उतरा और हृदय में प्रसन्न हुआ, आनन्द से नेत्र विकसित हुए जितनी * * अपने जीवन की नहीं उतनी अपनी प्राणप्रिया के जीवन की लग रही है। राजा बड़े विनय के साथ बोला, हे
भगवती ! मेरे पर कृपा कर मेरी प्रिय रानी को जीवदान दो। यह सुनते ही तपस्विनी ने ज्यों ही संजीवनी जड़ी
रानी की नासिका से लगाई, त्यों ही सब नगर के लोगों के देखते २रानी को चेतना प्राप्त हुई। आलस्य कीचेष्टा * कर उठी, राजा को यह बात देखकर अपने जीवन की आशा हुई। रानी को जीवित देख आनन्द को प्राप्त हुआk और नेत्रों से हर्ष के आंसू बहने लगे। राजा ऊंची भुजाकर नाचने लगा और कई प्रकार के मंगल बाजे बजवाने लगा।
बड़े महोत्सव के साथ हाथी पर चढ़ाकर अपने नगर में रानी का प्रवेश कराया।तापसी से कहने लगा, तार्य ये मेरे अंग के आभूषण आपको अर्पण करता है, फिर आप जो श्राज्ञा करें वह करने को तैयार हैं,
आपका कथन कभी नहीं लोगा; आपका कार्य सिर से करने को उद्यत हूँ। तब तापसी बोली-हे राजन् ! । । मुझे हिरण्य रत्न और आभरणादिक से कुछ प्रयोजन नहीं, मैं तो तुम्हारे नगर में भिक्षा पाती हूँ उसी में मेरा
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