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। विनयंधर राजकुमार भानुमती राजकन्या और राज्य सुख प्राप्त होकर हर्ष को प्राप्त हुआ और उसके मूल वंश T की शुद्धि भी प्रगट हो गई, कर्मकर नाम दूर हुआ, यह सब यातें श्री जिनराज के धूप दान के प्रभाव से हुई।।
अनन्तर वह राजकुमार अपने पिता पर बड़ा अमर्ष ( क्रोध ) धारण करता हुआ अपनी सेना लेकर अपनी जन्मभूमि पोतननगर की तरफ चला। उस समय उसकी माता कमला रानी के बांमनेत्र और वामभुजा फरकने लगी। उसी दिन उसके पिता बजसिंह को भी खबर लगी, कि कोई राजा आप के नगर को जीतने के लिये सेना लेकर आता है। यह भी अहंकार धारण कर अपनी सेना सजा कर शस्त्रादिक से सजधज कर नगर से बाहर निकला । मार्ग में दोनों के संग्राम होने लगा, परस्पर गज घटा से गजघटा, रथ से रथ, अश्व से अश्व पैदल सिपाहियों से पैदल भिड़ने लगे। दोनों पिता पुत्रों को आपस में संबन्ध का ज्ञान नहीं रहा-इससे राजा अनेक प्रकार के शस्त्र सजा खह, वाण, धनुष, भाला, बरछी प्रमुख पुत्र पर चलाने लगा । पुत्र ने भी पिता पर धनुष से कई बाण चलाये, आपस में वर्षा की तरह वाणधारा बरसने लगी।
इसी अवसर में एक याण राजाने छोड़ा वह पुत्र के वक्षस्थल में ज़ोर से लगा, अत्यन्त ऋद्ध होकर पहने पिता के रथ की ध्वजा, छत्र, चाणों से काटकर भूमि पर गिरादी. और एक बाण ऐसा छोड़ा जिससे राजा -
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