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Acharya Sha Kailassagarsur Gyanmandi
श्री अष्ट प्रकार
पूना
جاليلي
अथ तृतीय पूजा में अक्षत का महात्म्य कहा जाता हैगाथा = अखंडिय फुडिय चोक्ख क्खएहि, पूजत्तयं जिणन्दस्स ।
पुरओ नरा कुणन्ता, पावन्ति अखण्डिय सुहाई ॥१॥ संस्कृतम् = अखण्डिता स्फुटित-चोक्षाक्षतैः, पूजया जिनेन्द्रस्य ।
पुरतो नराः कुर्वन्तः प्राप्नुवन्ति अखण्डित सुखानि ॥१॥ व्याख्या =जो न टूटे हों और न फूटे हों ऐसे चावलों से पूजते हुए जो मनुष्य श्री वीतराग भगवान् के चावलों
से स्वस्तक, नन्दावादि आठ मंगल बनाते हैं वे मनुष्य अक्षय सुख पाते हैं। अथोत् देवता मनुष्यभव सम्बन्धी बड़े विशाल भोग भोगकर अन्त में शुकराज पक्षी के जोड़े समान मुक्त स्थान को प्राप्त होते हैं।
शुकराज कथा। इसी भरत क्षेत्र में सिरपुर नामक नगर है। उसके बाहर उद्यान में श्री ऋषभदेव स्वामी का मन्दिर है। वह देव विमानवत् अत्यन्त रमणीय था । उसके सामने प्रक श्राम का पेड़ बड़ा मनोहर था, उसकी छाया बहुत गहन थी। उस वृक्ष पर एक शुक पक्षी का जोड़ा रहता था।
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F॥ २१ ॥
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