Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 53
________________ Acharya Sa v San Mahavir Jain Aradhana Kendra anmanda श्री अष्टग को बिना भोगे नहीं छूटते हैं। ऐसे सुन्दर वचन सुन कर राजा मन में विचार करता है कि इसके पूर्वभव का . का सम्बन्ध, पुण्य का फल, केवली भगवान् से जाकर पूछूगा। ऐसा विचार कर राजा अपने परिवार और परिजन को और धूपसार बान्धव को साथ लेकर केवली के * पास गया । विधिवत् प्रदक्षिणा देकर वन्दना कर बैठ गया और धर्म सुनने लगा । अवसर पाकर नमस्कार कर केवली भगवान से पूछने लगा, हे भगवन् ! इस धूपसार ने पूर्वभव में कौन सा पुण्य किया है? जिस से इसके शरीर में ऐसी सुगन्धि आती है और मैंने इसके शरीर पर निरपराध अशुचि लेपन क्यों कराया ? देवता ने आकर इस पर पुष्प वर्षा क्यों की? यह बात कृपा कर हमको कहिये, इसके सुनने का मुझे बड़ा कौतुक है। राजा के यह वचन सुन शुद्ध मत धारक केवली मुनि अपने केवल ज्ञान से इसके पूर्वभव का वृत्तान्त जान कर कहने लगे-हे राजन् ! इस धूपसार ने इस भव से तीसरे भव में श्री जिनराज के अगाडी प्रधान धपदान " दिया था उसके पुण्य के प्रभाव से इसके शरीर में सुगन्ध उत्पन्न हुई है और यह देवताओं का पूजनीय हया है। धन सम्पत्ति और मनुष्य सुख को भोगने वाला हुआ है। अब यह बहुत से मनुष्य सुख और देवसुख भोग कर धूपदान के भव से सातवें भव में मोक्ष जायगा । यह श्री जिनराज के सामने धूपदान का फल है। यह धूपसार التغليطهطالعطليطلعو For Private And Personal Use Only

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