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الحل لحلحيلد
अपनी स्त्री सेठानी को दिया । कुटुम्ब और परिवार में बधाई बांटी गई। बहुत उत्सव पूर्वक चिनयंधर नाम स्थापन किया। सेठानी ने उसको अपने पुत्र के समान पालन किया।
एकदा वह सार्थवाह अपने परिवार के साथ दूसरे नगर कांचनपुर में व्यापार के लिये गया, साथ में विनयधर पुत्र को भी लिया। वहां वह कुमार सार्थवाह के पुत्र समान दीखता था, परन्तु नगर के लोग उसको देखकर आपस में यह बात करते थे कि यह सार्थवाह के चाकर का पुत्र मालूम होता है। यह बात सुन कर मन में बहुत दुःखी हुश्रा विचार करता है जो वचन शास्त्र में कहे हैं वे सत्य हैं, जैसे मनुष्य पराये घर में काम करते । हुऐ कौन २ दुःख नहीं पाते हैं ?
एक समय वह कुमार क्रीड़ा करता हुश्रा श्री जिनराज के मन्दिर में पहुंचा। वहां साधु महाराज धर्म । कथा का व्याख्यान देते थे यह भी बैठ कर सुनने लगा । वहां जिन पूजा का प्रस्ताव चल रहा था, महिमा करते हुए साधु ने कहा जो मनुष्य कस्तूरी, चंदन, अगर, कपूर, सुगन्धित द्रव्य सहित धूप से पूजा करे तो सुरेन्द्र और । नरेन्द्रों को पूज्य होये। यह सुनकर बिनयंधर कुमार विचारने लगा जो सदा काल श्री वीतराग भगवान् की धूप से पूजा करते हैं वे धन्य हैं। मैं इस समय असमर्थ हूँ, सो एक दिन में भी जिन पूजा का उदय नहीं होता है,
करना
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