________________
Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री अष्ट प्रकार पूजा ॥ १३ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ने बुद्धिमानी से लकड़ी और डोरी से बच्च े सहित पान्थ को बाहर निकलवाया और बड़े आदर और उत्साह से अपने डेरे में ले गया। वहां पान्थ ने सार्थवाह को प्रणाम किया और कहा-मुझे और इस बालक को जीवित दान देने वाले आप हो, मैं आपका बड़ा उपकार मानता हूँ तब सार्थवाह बोला तुम कौन हो और यह बालक कौन है? तुम्हारे और इसके कैसे सम्बन्ध हुआ ? मुझे आप दोनों की बात सुनने का बड़ा कौतुक है, मेरे पूछने का तात्पर्य यह है कि यह बालक तुम्हारा ही है या अन्य का ? तब पान्थ कहने लगा हे सार्थवाह ! मैं पड़ा दरिद्री ओर दुःखी हैं इससे संतप्त हुआ परदेश को चला था, कितना ही मार्ग उल्लंघन कर इस अटवी में आया और मुझे बहुत तृषा लगी तब जल गवेषण करता हुआ इस कुए में गिर गया। वहां ही पड़े हुए मैंने आकाश मागंसे उतरते हुये और रोते हुये इस बालक को देखा, मुझको करुणा उत्पन्न हुई मैंने बांह से पकड़ कर छाती से लगा लिया। वह हमारा वृत्तान्त है मैं इस पालक का पालन करने को असमर्थ हूँ। इसलिये हे सत्पुरुष ! सार्थवाह ! इस बालक को आप ग्रहण करो मैंने आपको सन्तुष्ट होकर दिया है।
सार्थवाहने बड़े हर्ष के साथ उस बालक को अंगीकार किया और उस पान्थ को विधि सहित बहुत द्रव्य दान दिया और विदा किया। वह धनपति भी मार्ग में प्रयाण करता २ अपने घर आया उस राजकुमार को
For Private And Personal Use Only
॥ १३ ॥