________________
Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirtm.org
Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir
चिलिम
कुत्रा में कोई बटाऊ मार्ग चलता प्यास के मारे जल दूढता पड़ गया था, एक बार इस पान्थ को गीष्म में सूर्य त की किरणों से अत्यन्त तृषा लगी तब यह कुमां पर जल देखता था इतने में नेत्रों में अंधेरी आई और भीतर में
पड़ गया। पान्थ ने कान्ति से उद्योत करते हुए तेजस्वी बालक को ऊपर से उल्कापात के जैसे पड़ते हुए देखा, और पानी में पड़ने के भय से लम्बी भुजा फैला कर पकड़ा और पुत्र के जैसे छातीसे लगा लिया,और चिन्ता कर ने लगा जितना मुझे मरने का दुःख नहीं है उतना इस बालक का दुःख है, यह कैसे जीवेगा? मैं इसके भूख । प्यास का क्या प्रबन्ध करू'गा।" फिर विचार कर हृदय में धैर्य धारण किया और कहने लगा इस बालक ने बड़ा ग
आयुः कर्म संचित किया है तो निश्चय इसकी रक्षा होगी और यह जीवित रहेगा। यह कह कर छाती से लगा। | लिया और रोते हए बालक को आश्वासन दिया।
इतने में दैवयोग से वहां सुधन नामक सार्थवाह अपनी सार्थ संपदा से युक्त वहाँ डेरा लगाकर उस वन में विश्राम लिया है। इसी अवसर में कुएं पर जल ग्रहण करनेको उस सार्थवाहके पुरुष आये और भीतर से एक पान्थ और बच्चे के रोने का शब्द सुना-उन्हों ने सार्थवाह से कहा वह भी सुनकर आश्चर्य के साथ परिवार सहित वहां आकर कुए में पूछा तुम कौन हो। तब पान्ध ने संप से अपना वृत्तान्त कहा-तव सार्थवाह
For Private And Personal use only