Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 45
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir श्री अष्ट ॥१६॥ वही विनयधर कुमार किसी गांव में कुछ काम करनेको गया था। पीछे आते हुएने प्रतवन (स्मशान) में * बड़ा भारी कोलाहल और बाद्यों का निर्घोष सुना और राजादि लोगों को रोते और विलाप करते देखा । यह देखा राजकुमार ने लोगों से पूछा, यहां क्या है ? तब लोगों ने पिछला सब हाल कह सुनाया। यह सुनकर बिनयंधर कुमार बोला, तुम अपने स्वामी से कहो कि एक नर राजकन्या को जीवन दान देता है। यह सुन श्रेष्ठ पुरुषों ने जाकर राजा से कहा । तब राजा हृदय में बहुत प्रसन्न हुआ, कुमार से बोला जो आप इस राज कन्या को जीवित करदें तो मैं आप को इसी कन्या के साथ अर्धराज्य सौंपता हूँ-और जो आप इसके सिवाय कुछ मांगोगे तो भो दू'गा। पार २ क्या कहूँ, कुवरी को जीवित करने से मेरे प्राण भी आप के आधीन है। तब कुमार राजा को नमस्कार करके बोला हे देव! ऐसा मत कहो जब आप का काम सिद्ध हो जाय । तब जैसा उचित हो वैसा करना अभी तो आप अपनी पुत्री को मुझे दिखावें। ऐसा कहते ही राजा ने उस * 1 कन्या को चिता से निकलवा कर विनयधर कुमार के आगे मंगाई। उस समय बहुत लोग इकट्ठहो गये। कुमार ने भी भूमि शुद्ध करी, गोबर से मण्डल बनवाया, उसपर अक्षतः पुष्प, चंदन से पूजन कर धूप दीपादि स्थापन किये। उस यक्ष का अपने मन में स्मरण करता हुआ-उस रन के पानी से कुमारी के शरीर पर न॥ १६ ॥ प्र बीटा दिया। कुमारी को कुछ चेतना प्राप्त हुई सर्प विष दूर हुआ। फिर वहां से उठकर इधर उधर सब लोगों MPAND For Private And Personal use only

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