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श्री अष्ट प्रकार पूजा ॥ १० ॥
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आये और उसके मस्तक पर पुष्पों की वर्षा करने लगे। यह कुमार विस्मित हुआ उसके मुख कमल की तरफ देखता है।
तब उस साध्वी ने केवल ज्ञान से उसको पूर्वभव का पति जानकर सब बात कही। हे महानुभाव ! इस भव से दूसरे भव में तुम विद्याधर राजा खेचर हुए थे, मेरे साथ राज्यसुख और विद्याधर की पदवी भोगी थी । फिर अन्त में राज्य छोड़, दीक्षा लेकर संयम पालन कर देवलोक में उत्पन्न हुए। वहां से च्युत होकर फिर विद्याधर हुए। इस प्रकार मनुष्य और देव संबंधी सुख भोगे हैं- तथापि अभी तक स्नेह नहीं छोड़ा। यह मोहनी कर्म संसार के बढ़ाने वाले हैं, इस लिये तुम एकाग्र चित हो कर धर्म के विषय में उद्यम करो ।
उस केवल ज्ञान धारण करने वाली साध्वी के ऐसे वचन सुनकर जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। पूर्व जन्म का सब संबंध स्मरण किया। इस संसार से विरक्त हो प्रवल संवेग को धारण कर अपने हाथ से ही मस्तक के केश उखाड़ दिये और उस साध्वी को वन्दना कर बोला हे भगवती ! साध्वी! आपने जो पूर्व भव का संबंध बताया वह सत्य है । ज्ञाति स्मरण ज्ञान से मैंने प्रतिबोध प्राप्त किया है। अभी आपने मेरे पर बड़ा उपकार किया है। बहुत क्या कहूँ, आपने मुझ को धर्म का बोध देकर संसार रूप अंधकूप में पड़ते हुए को बचाया, इसी
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