Book Title: Ashtaprakari Pooja Kathanak
Author(s): Vijaychandra Kevali
Publisher: Gajendrasinh Raghuvanshi

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Page 31
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री अष्ट प्रकार पूजा ॥६॥ www.kobatirth.org गुरु के चरण कमल को वन्दना कर वहां से उठ अपने राजभवन में आया और विस्तार के साथ वीतराग भाषित धर्म करने लगा । अब वह मदनावली आर्या गुरु की आज्ञा के अनुसार आर्थिकाओं के साथ विहार करती हुई अत्यन्त कठिन तप करने लगी और शुद्ध भावना धारण करती थी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वह देवता भी सातवें दिन देवलोक से च्युत होकर विद्याधर राजा के पुत्र उत्पन्न हुआ । द्वितीया के चन्द्र समान बढ़ने लगा । उसका नाम मृगाङ्ककुमार रक्खा गया। जब वह यौवनावस्था को प्राप्त हुआ। तब मदनावली आर्या विहार करती हुई उस विद्याधर के आश्रम द्वार के पास आई और निश्चल ध्यान लगा लिया । रत्नों और कांचन से जटित विमान में बैठे हुए मृगाङ्ककुमार ने उसको देखा । अपनी शुद्ध वस्त्रादिक की कांति से फिरने लगो । कुमार ने मदनावली को पूर्व भव की इच्छा के साथ देख कर कहा, हे कृशोदरी ! तू ऐसी उग्र तपस्या क्यों करती है ? इस बात का कारण मुझे कह, यदि तेरे भोग सुख की वांछा है तो मेरे कहे वचन सुन, मैं खेचर विद्याधर राजा का कुँवर हुँ, मृगाङ्ककुमार मेरा नाम है रत्नमाला नामक राजपुत्री के साथ पाणिग्रहण For Private And Personal Use Only ॥ ६॥

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