________________
Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री अष्ट
प्रकार
पूजा ॥ ८ ॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आपके केवल ज्ञान की महिमा करने को बहुत से देवता आये हैं, सो क्या वह शुक भी आया है? यदि आया हो तो कृपा कर मुझको दिखाइये। इस बात का मुझे बड़ा कौतुक है । तब केवली घोले यह तुम्हारे मुख के सामने बैठा है । मणि और रत्नों से जटित मुकुट और कुंडल स्वर्ण आभूषण धारण किया हुआ है सो यह शुक देवता है और तुम्हारे पूर्व भव का पति है ।
इस प्रकार केवली के मुख से वचन सुनते ही मदनावली उसके पास गई और कहने लगी हे सज्जन देव ! तुमने मेरे पर बहुत उपकार किया है। मैं आपका पीछा उपकार क्या कर सकती हूँ? मैं मनुष्य जाति आप का उपकार करने को असमर्थ हूँ । यदि कोई उपकार इस जन से हो सके तो कृपा कर कहिये ।
तब देवता ने कहा, हे भद्र े ! तू भी मुख से उपकार करने को समर्थ है, वह उपकार बताता हूँ । आज से सातवें दिन देवयोनि से च्युत होकर मैं बताढ्य पर्वत पर विद्याधर राजा का पुत्र होऊँगा । इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। तू मुझको प्रतियोध देकर धर्म सुनाना । यह उपकार जरूर करना ।
ऐसी बात देवता के मुख से सुनकर मदनावली प्रसन्न हुई और उस वचन को अंगीकार कर कहने लगी - तथास्तु । देवता सब देवताओं के साथ अपने स्थान पर गया ।
For Private And Personal Use Only
॥८॥