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Acharya Sha Kaassagas Gyanmande
ل لطليطلعليلا
मदनावली अपने स्वामी से कहने लगी। हे नाथ ! मैंने देवलोक का सुख भोगकर आपको पति । अंगीकार किया। अव मनुष्य जन्म का सुख भोग रही हैं। आप बड़े पुण्यवान हैं, आपके प्रताप से सब दुःख । 1 क्षय हो गये। परन्तु अब संसार का दु:ख क्षय हो, ऐसा कीजिये । तव राजा ने कहा, हे सुन्दरी ! विधाता ने बड़े
पुण्य के योग से यह मनुष्य देह दी है, यह रत्न समान अमूल्य पदार्थ वार २ मिलना बड़ा दुर्लभ है। सो हे । रानी ! हाय में आया हुआ रत्न वृथा कैसे गमाया जाय ? यह मार्ग चूकने के लायक नहीं है।
ऐसे राजा के वचन सुनकर रानी ने कहा हे नाथ! तुम्हारे हृदय की बात मैंने सर्व जानली । परन्तु इस संसार में किसी के साथ प्रतिबंध करना योग्य नहीं। जहां संयोग है, वहां वियोग अवश्य है । संसार में किस को संयोग और वियोग नहीं हुआ?
इस प्रकार वैराग्य रंग से रंगे हुए रानी के वचन सुनकर भी राजा ने यहत स्नेह और मोह से जब । रानी को आज्ञा नहीं दी तब रानी ने तत्काल गुरु के हाथ को अपने मस्तक पर स्थापन कराया और दीक्षा ग्रहण की।
राजा मुनिराज को वन्दना कर रानी के वियोग से वर्षा कालमें मेघधारा के समान आंसू गिराता हुआ गद्गद् स्वर से रुदन करने लगा । पुनः विलाप करता हुमा मदनावली आर्या को हित शिक्षा दे धर्म सुनकर
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