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San Arakende
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के उत्सव से भी यह उत्सव बड़ा जानकर, आनन्द पूर्वक परिवार साथ लेमुनीश्वर को वन्दना करने के । * लिये रानी सहित वनखण्ड को गया। और भी बहुत से नगर के लोग बन्दना करने को वहां आये।
वहां तीन प्रदक्षिणा देकर चरण कमल को प्रणाम कर सकल- परिजन और परिवार के साथ सामने राजा बैठ गया। गुरु की शुश्रूषा और धर्म सुनने की इच्छा उत्पन्न हुई, तब केवली ने धर्मदेशना प्रारंभ की। जब मुनि धर्मदेशना दे चुके, तब रानी मदनावली ने अवसर पाकर पूछा।
हे मुनिनाथ ! हे भगवन् ! वह शुकराज कौन था ? जिसने मुझको दुःख में पीड़ित जानकर उपदेश सुना। इतना बड़ा उपकार किया।
तब केवली कहते हैं हे भद्र ! यह शुक तुम्हारे पूर्व भव का भर्ता था। वह देव भव में देवता उत्पन्न हुआ, उसने तुम्हारा बड़ा दुःख जानकर तुम्हारे स्नेह से कीर मिथुन रूप हो तुम्हारे पास आकर उपाय बताया। वह देवता कभी तीर्थकर की देशना में गया था, वहां तुम्हारा सर्वे चरित्र सुना, तव तुम्हारे दुःख दूर करने को पूर्व जन्म के स्नेह से,जिनराज की गंध से पूजा करने का उपाय बताया।
केवली महाराज के यह वचन सुन बहुत संतोष को प्राप्त हुई। फिर पूछने लगी, हे भगवन् ! यहां
रविवारी
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