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श्री अट पहिले श्री जिनराज की प्रतिमा मंगाकर सुगन्ध वास से पूजने लगी। विधिपूर्वक त्रिकाल संध्या के समय प्रकार
वीतराग भगवान् को भक्ति से पूजती थी। इस प्रकार पूजा करते २ सातवें दिन जैसे मन्त्र के बल से भूत .. * पिशाचादिक नष्ट होते हैं उसी तरह उसके शरीर का दुर्गन्ध रोग नष्ट हो गया।
जब रानी ने अपने शरीर का रोग नष्ट हुआ देखा तो सन्तुष्ट हुई, उसके नेत्र आनन्द से प्रफुल्लित हो गये, जो मनुष्य वहां उसकी रक्षा के लिये रहते थे, वे मंगलीक वधाई राजा को जाकर देने लगे। हे राजन् ! आपके पुण्य प्रभाव से रानी के शरीर की दुर्गन्धि लीन हुई। ऐसे हर्ष के वचन सुन राजा मानो अमृत की वर्षा से सिक्त हुआ, संतोष को प्राप्त हुआ। उन चौकीदार मनुष्यों को बहुत दान दिया और अपना परिवार साथ ले बन में गया । उस रानी को बड़े उत्सव के साथ हाथी पर चढ़ाकर नगर में लाया और राज भवन में प्रवेश किया। अत्यन्त संतुष्ट हुआ राजा नगर में महा महोत्सव कराने लगा। वह बड़े स्नेह से समय विताता था।
एकदा राजा की सभा में उद्यानपाल ने आकर विनती की, हे महाराज ! मनोहर नामक बनखण्ड में अमरतेज नामक मुनिराज पधारे हैं । तप संयम पालते हुए, शुक्ल ध्यान से ध्यान करते हुए, उस मुनिराज को , * लोकालोक प्रकाश करनेवाला केवल ज्ञान उत्पन्न हो गया है। ऐसी बात सुनकर राजा मन में प्रसन्न हुआ । रानी,
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