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श्री अष्ट पर बैठी हुई ऊपर दृष्टि करती है तो सूत्रा का जोड़ा दिखाई दिया। जब रात्रि का समय हुआ तव शुकराज अपनी । प्रकार है
। स्त्री से कहने लगा। हे प्रिये ! एक पहर रात्रि व्यतीत हो गई । तथ शुकी बोली हे प्रियतम् ! आप बड़े यशस्वी हैं ॥५॥ मेरे योग्य कार्य हो वह आज्ञा करें, मैं आपकी सेवा करने को सर्वदा तत्पर हैं।
इस प्रकार दोनों को व तें सुनकर मदनावली ने प्रसन्न होकर विचार किया कि कोई मुझको इस दुःख से दूर होने का उपाय बतावे तो अच्छा हो । इतने में शुकराज अपनी स्त्री से कहता है कि मैं एक आश्चर्य कारिणी वार्ता सुनाना चाहता हूँ यह सुनकर शुकी बोली, हे प्रियतम् अचंभा वाली कथा आप मुझे अवश्य कहें, जिससे मेरा मन संतोष पावे। तब कीर कहने लगा पूर्व भव में एक जयशूर नामक राजा था, उस की प्रधान स्त्री सुखमती थी। वह जब गर्भवती हुई तब मनोरथ पूर्ण करने को राजा उसको लेकर अष्टापद् तीर्थ गया । वहां गन्ध पूजा की, मार्ग में मुनिराज के शरीर को स्नान कराया, पीछे घर आया, अन्त में पुत्र हुआ, पुत्र को राज्य समर्पण कर दीक्षा ली, देवलोक गये। वहां से सुखमती का जीव च्युत होकर मदनावली कन्या हुई। वह राजा के साथ व्याही गई, वह अब रानी यहां बन में रहती है।
ऐसे शुक के वचन सुनकर मदनावली को जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, पूर्व भव का वृत्तान्त सब
MAMPARAME
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