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San Mahavir lain Aradhaa Kenda
Acharya Sha Kaassaganan Gyanmand
1. करने को जाता हैं। बड़े महोत्सव के साथ यहां आया हूँ। मैंने तुमको देखते ही स्नेहवश होकर हरकको J और यहां खड़ा रहा है। इस प्रकार बहुत मीठे मोहितकारक वचन कहता है और अनेक काम चेष्टा भी दिखाता
है पर वह साध्वी किंचितमात्र ध्यान से नहीं चली। संयम गुणों में सावधान होकर उसके वचनों पर विश्वास नहीं करती है। निश्चल होकर मेरु चूलिका की भांति दृढ़ होगयी।
तव कुमार फिर स्नेह से कहता है । हे सुभगे! इतना कष्ट तपस्या में क्यों करती है। इन कष्टों को छोड़ दे-और इस विमान में पाकर बैठ जा, मुझे रत्नमाला से कोई प्रयोजन नहीं। तेरे साथ ही मैं उत्तमसुख भोग'गा। इसलिये तू हमारे विद्याधरों के नगर में आकर प्रवेश कर ।
इस प्रकार वह जैसे बार २ पूर्वभव का स्नेह दिखाता है वैसे ही यह साध्वी तप में दृढ़ होकर शुभ ध्यान ध्याती है पर उसके वचन पर प्रतीत नहीं करतीहै। उसके विकार सहित वचन सुनकर आतुर नहीं हई। क्योंकि इसने बड़ी संयम शक्ति धारण कर रक्खी है।
मगाकुमार स्नेह से मूञ्चित हो अनुराग दिखाता हुआ अनुकूल उपसर्ग करता है, परन्तु इस साध्वी को शुक्ल ध्यान में रहते हुए विमल केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। चार प्रकार के देवता उसकी महिमा करने को .
MAMMAJHA
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