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॥श्री मन्जिनेन्द्राय नमः ॥ महावीरं प्रणम्यादी, नरदेवेन्द्रपूजितम् ।
जिन पूजाष्टकस्यात्र, हिन्दी-भाषां करोम्यहम् ॥ ॥ अथ 'श्री अष्ट प्रकार पूजा कथानकं' लिख्यते ॥ गाथा = विहडियकम्मकलङ्क, कयकेवलेतेयतिहुयणुज्जोयम् ।
सुरनरकुमुयाणंदं, नमह सया वीरजिनचन्दम् ॥१॥ संस्कृतच्छाया = विहतकर्मकलङ्क, कृतकेवल तेजस्त्रिभुवनोद्योतम् ।
सुरनरकुमुदानन्दं, नमत सदा वीरजिनचन्द्रम् ॥१॥ सम्बन्ध = धर्मोपदेश दाता श्री विजयचन्द्र केवली अपने पुत्र राजा हरचन्द्र के सामने मष्ट प्रकार की पूजा का
महात्म्य कहते हैं।
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