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الطالبيرو
संस्कृतच्छाया = वरगन्ध-धूपाक्षतकणैः कुसुमैः प्रवरदीपः ।
नैवेद्यफलजलैः अष्टविधा भवति जिनपूजा ॥३॥ व्याख्या= श्री बीत राग भगवान् की-पूजा के आठ भेद क्रम से दिखाते हैं
पहिली पूजा प्रधान वासक्षेप, दूसरी धूप, तीसरी अक्षत, चौथी पुष्प, पंचमी दीपक, छठी नैवेद्य, सातवीं फल और आठवीं जल पूजा होती है ॥३॥
__ तत्र तावत्वासक्षेपपूजाफल माह--- गाथा - अहं धनसुगन्धं, वर्ण रूबं सुहं च सोहम्गम् ॥
पावइ परमपयंपिहु, पुरिसो जिणगन्धपूआए॥2॥ संस्कृतच्छाया = अङ्गं धन्य सुगन्धं, वर्ण रूपं सुखं च सौभाग्यम्॥
प्राप्नोति परम पदमपि खलु, पुरुषो जिन गन्ध पूजया॥४॥ व्याख्या=जो मनुष्य भगवान की पूजा वासक्षेप से करता है वह इस लोकमें शरीर में अकळी मधला रूप अच्छा वणे, अच्छा सुख और सौभाग्य (यश) प्राप्त करता है और परलोक में परमपद अर्थात् मुक्ति
माराम अच्छी सुगंध, अच्छा रूप, अच्छा वर्ण, अच्छा सुख और सौभाग्य (यशो पद प्राप्त करता है।
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