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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
का वर्णन प्रायः सभी कवियों ने किया है। पानी से उसे अत्यन्त प्रेम है। आचार्य श्री ने लिखा है कि, प्रथम स्वप्न में रानी त्रिशला ने एसे गंधहस्ती-मन्दोन्मत्त हाथी को देखा, जिसने चलते हुए अत्यन्त स्थूल चरणों के अग्रभाग से कमठ के पृष्ठ भाग को विदीर्ण कर दिया था, जो बहुत भारी गन्ध से युक्त दान-मदजल से सहित था और सुमेरु पर्वत के समान ऊँचा था
'सुसञ्चरत्स्थूलतरक्रमाग्र - प्रभिन्नपारीरणपृष्ठभागम्।
अनल्पगन्धोल्वणदाननाथं सुवर्णशैलोन्नतगन्धपीलुम। आचार्य श्री अपने इस महाकाव्य में ऐरावत' तथा वामन हाथियों का वर्णन किया है। जहाँ उन्होंने लिखा है कि शुक्ल वर्ण वाले 'ऐरावत' हाथी से सुवर्णमय पीला सुमेरू पर्वत ऐसा सुशोभित हो रहा था जैसे शुक्ल वस्त्रधारी नारद से पीताम्बर वस्त्रधारी कृष्ण सुशोभित होते थे
शुण्डां तथा नादयता सुवीणां सुवर्णपीतेन सुवाससेव। कुचेन युक्तेन गजेश्वरेण मुक्ताजटापूरतिमस्तकेन।
पीताम्बरं स्पष्टविराजमानं स नारदेनेव मुरारिरेव।
ऐरावणेनात्र सुवर्णशैलो मनोऽभिरामः परमा बभौ वा॥ इसी प्रकार 'वामन' आदि दिग्गजों के द्वारा तीनों जगत धारण करने का वर्णन भी आचार्य श्री ने किया है। इसके अतिरिक्त हाथियों के समूह क्रीडा का वर्णन भी वीरेन्द्रशर्माभ्युदय महाकाव्य में हुआ है। (ग) महिष (भैंसा)
महिष का प्रयोग भारतीय कृषक कृषि कार्य हेतु करते हैं। भार वाहन एवं कृषि कर्षण कार्य (जुताई) के लिए महिष का प्रयोग प्राचीन काल से आज तक होता आ रहा है। जहाँ पर वृषभों की कमी दिखाई देती है, वहाँ पर महिष उसके कार्य को पूर्णता प्रदान करता है। जो स्वभाव से कठोर एवं आलसी होता है। माँ के उदर से उत्पन्न होने के साथ ही उसके साथ उपेक्षा का भाव जन मानस में दिखाई देता है। वीरेन्द्रशर्माभ्युदय महाकाव्य में सिद्धार्थ के वर्णन में कवि का कथन है कि, राजा सिद्धार्थ के शत्रुओं के घर उनके अभाव में उत्तम कांचली वाले सांपो से सहित धतूरों के समूह से सुन्दर और महिष-भैंसा से सहित हो गये थे अर्थात् शत्रुओं के भाग जाने से उनके घरों में लोग भैंसा बाँधने लगे थे।
"सकञ्चुकैः कुण्डलिभिः सनाथा अनल्पसत्काञ्चनचक्रकान्ताः।
चित्रं बभूवुर्महिषीविभूषा अमित्रगेहास्तदसत्व एवम्॥10 इस प्रकार आचार्य श्री ने वन्यादि पशुओं के साथ-साथ घरेलू पशुओं का भी चित्रण अपने इस महाकाव्य में किया है। (घ) मृग
स्वभाव से अत्यन्त मृदु एवं सबको अपनी ओर आकर्षित करने में चतुर मृग के विषय में सभी परिचित होंगे। अपनी चञ्चल आँखों, किलोलें भरती उछाल से आनन्दित करने वाला शुद्ध शाकाहारी पशु का वर्णन आचार्य श्री ने वीरेन्द्रशर्माभ्युदय काव्य में किया है। उन्होंने इसका वर्णन रानी त्रिशला के वर्णन करते हुए कहते है। कि, मृग के समान नेत्रों वाली प्रियकारिणी राजा सिद्धार्थ की कामेच्छा पूर्ति के लिए वेश्या के समान थी।