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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
में महकते पुष्प, क्रीडा करते पशु, मधुर गान एवं कलरव को प्रस्तुत करते पक्षी एवं अन्य जीव समूह किसके मन को आकर्षित नहीं करते हैं। आचार्य श्री की बहुमुखी प्रतिभा का समग्र उल्लेख करना तो मुझ में संभव नहीं है, फिर भी उनके द्वारा वीरेन्द्रशर्माभ्युदय महाकाव्य में जा पशु पक्षियों से संबन्धित तथ्य है, उनको चित्रण करने का प्रयास मैं अवश्य ही करूँगा। मेरे सामने आचार्य श्री के समस्त ग्रंथ हैं, फिर भी अन्य सभी ग्रंथों में सिवाय 'वीरेन्द्रशर्माभ्युदय' के काफी चर्चा हो चुकी है। इसलिए मैं उसी आधार पर पशु-पक्षियों के अध्ययन को शोध-पत्र का विषय बनाया है। जिसका वर्णन क्रमशः इस प्रकार है। पशु जगत् (क) सिंह
सिंह जंगल का सम्राट माना गया है। साथ ही साथ वह अत्यन्त स्वाभिमानी एवं पराक्रमी है। सर्वप्रथम सिंह का वर्णन आचार्य श्री ज्ञानसागर ने इस महाकाव्य में राजा सिद्धार्थ के वर्णन में किया है। उन्होंने लिखा है कि, जिस प्रकार सिंह के विद्यमान रहते हुए गजराज सुशोभित नहीं होता है उसी प्रकार राजा सिद्धार्थ के रहते हुए विजयार्धपर्वत पर कोई भी सुशोभित नहीं था।
"न राजिते कश्चन् राजिते पतौ न राजते कश्चन राजते गिरौ।
वनावनौ सिन्धुवनावनौ नरः मृगेन्द्रके वापि मृगेन्द्रकेश्वरः। सिंह वर्णन का द्वितीय स्थल वह है जहाँ माता त्रिशला तृतीय स्वप्न देखती है। तृतीय स्वप्न में माता ने ऐसा सिंह देखा जिसने मदनावि हस्तियों के कपोलचक्र गण्डस्थल को विदीर्ण कर दिया था तथा चन्द्रमा में स्थित मृग को प्राप्त करने की इच्छा से मानो आकाश में छलाँग भरी थी।
“विदारिताशेषकपोलचक्र - विनिर्गलद्दानसमूहसिन्धुम् ।
सितांशुसारड्.गविलित्सयापि कृतक्रमं पुष्कर एणनाथम्॥" सिंह वर्णन का तृतीय स्थल वह जहाँ राजा सिद्धार्थ रानी के स्वप्नों का हल बताते है। उन्होंने रानी के पुत्र को सिंह के समान बताया है।
इस प्रकार मेरु पर्वत पर काले-काले मेघों को गरजते हुए हाथी समझ कर सिंह बार-बार उन पर आक्रमण करते हैं।' (ख) गज (हाथी)
समस्त संस्कृत काव्यों में गज का महत्वपूर्ण स्थान है। काव्यों के अतिरिक्त 'गज' जन सामान्य के लिए भी प्रिय माना जाता रहा है। वैवाहिक कार्यक्रमों में 'गज' के बिना सर्वत्र शून्यता दिखाई देती है। जैन परंपरा में ऐरावत नामक गज का विशेष उल्लेख हुआ है। जिसका प्रयोग तीर्थंकरों के जन्माभिषेक के समय विशेष रूप से हुआ है। जबकि 'ऐरावत' को 'इन्द्र' के वाहन के रूप में जाना जाता है। कालिदास ने इसे समुद्र से उत्पन्न माना है। आचार्य ज्ञानसागर ने भी 'ऐरावत' गज को विशेष रूप से अपने इस महाकाव्य में वर्णित किया है। गज सिंह की अपेक्षा एक शाकाहारी प्राणी है। वह बरगद एवं पीपल की नवीन कोपलों एवं इक्षु (ईख) का विशेष प्रेमी बताया गया है। काव्यों में गज की 'वप्र क्रीड़ा'