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अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010
“वीरेन्द्रशर्माभ्युदय” महाकाव्य में पशु-पक्षी एवं अन्य जीव जन्तु
- विनय कुमार सिंह
संस्कृत साहित्य का विश्व के समस्त साहित्यों में विशिष्ट स्थान है। यह साहित्य केवल एक धर्म संप्रदाय विशेष का न होकर "सर्वधर्म" विशेष हो चुका है। संस्कृत साहित्य के विकास में जैनाचार्यों का अप्रतिम योगदान रहा है। महाकवि कालिदास, बाणभट्टादि कवियों ने अपने ग्रंथों की रचना इसी भाषा में करके इसे महिमाशालिनी बनाया है। वसवी शताब्दी के सुविख्यात, निष्काम योगी एवं दिगम्बर जैनाचायों के श्रेष्ठ आचार्यत्व को सुशोभित करने वाले वालब्रह्मचारी श्री भूरामलशास्त्री (आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज) के पवित्र नाम एवं उनकी कृतियों से 'भारतवर्ष' का कौन ऐसा प्राणी है, जो परिचित न होगा। दिगम्बराचार्य श्री ज्ञानसागर जी ने भी अपनी काव्यकला समाज में प्रस्तुत करने हेतु इसी संस्कृत भाषा का आश्रय लिया और जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, वीरेन्द्रशर्माभ्युदय, भद्रोदय, (समुद्रदत्त चरित्र) दयोदय चम्पू जैसे महाकाव्यों एवं चम्पू काव्य का प्रणयन किया।
आचार्य ज्ञानसागर जी आधुनिक युग के संस्कृत महाकवियों में श्रेष्ठ कवि माने जा सकते हैं। "वीरेन्द्रशर्माभ्युदय" नामक महाकाव्य जो कि भगवान महावीर' के जन्मोत्सव का वर्णन करने वाला महाकाव्य है। जो आचार्य श्री ज्ञानसागर के कल्पना शक्ति एवं विशद् ज्ञान का परिचायक है। कवि के अन्य महाकाव्यों की भाँति इस महाकाव्य को विशेष ख्याति नहीं मिल पायी उसका विशेष कारण इसका प्रकाशन न होना है। प्रकाशन न होना भी यह स्पष्ट करता है कि, यह कृति अपूर्णत्व के कारण ही विद्वत्समाज से अछूती रही। किन्तु आचार्य श्री की संस्कृत रचनाओं में 'वीरेन्द्रशमभ्युदय' का भी नाम आता है। जिसका वर्णन डा0 अशोक कुमार जैन ने अपने 'वीरेन्द्रशर्माभ्युदय' में दिया है किन्तु इस समय यह “वीरेन्द्रशर्माभ्युदय" महाकाव्य के नाम से डा० पं० पन्नालाल जैन साहित्याचार्य, सागर द्वारा हिन्दी टीकानुवाद सहित जयंतीलाल केदार लाल शाह रायदेश (ईडर) द्वारा प्रकाशित है। किन्तु अब भी इसमें केवल 6 सर्ग ही प्रकाशित है । कवि की इस कृति का वर्णन मैने भी अपने शोध प्रबन्ध जिसका शीर्षक "आचार्य ज्ञानसागर के संस्कृत काव्य ग्रंथों का काव्यशास्त्रीय अनुशीलन" के अन्तर्गत काव्यशास्वीयता के आधार पर किया है। आचार्य श्री ज्ञानसागर का यह महाकाव्य मुझे सागर से मुनि श्री अभय सागर जी महाराज की कृपा से प्राप्त हुआ था।
आचार्य श्री ने अपने अन्य महाकाव्यों की भाँति ही इस महाकाव्य को भी काव्यशास्त्र के आधार पर महाकाव्य के लक्षणों से संयुक्त किया है। अन्य वर्णनों के साथ साथ कवि ज्ञानसागर ने अपने इस महाकाव्य में प्रकृति के साथ उसके अन्य सहायकों का भी चित्रण किया है। प्रकृति प्राचीन काल से ही मानव की सहचारिणी रही है। उसके सुरम्य आँचल