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आचार-१/२/४/८६
कि पौद्गलिक साधनों से कभी सुख मिलता है, कभी नहीं, वे क्षण-भंगुर हैं, तथा वे ही शल्य नहीं जानते ।
यह संसार स्त्रियों के द्वारा पराजित है है पुरुष ! वे (स्त्रियों से पराजित जन) कहते हैं - ये स्त्रियाँ आयतन हैं (किंतु उनका) यह कथन, दुःख के लिए एवं मोह, मृत्यु, नरक तथा नरक-तिर्यंच गति के लिए होता है ।
सतत मूढ रहने वाला मनुष्य धर्म को नहीं जान पाता । भगवान् महावीर ने कहा है - महामोह में अप्रमत्त रहे । बुद्धिमान पुरुष को प्रमाद से बचना चाहिए । शान्ति और मरण को देखने वाला (प्रमाद न करे) यह शरीर भंगुरधर्मा है, यहदेखने वाला (प्रमाद न करे) ।
ये भोग (तेरी अतृप्ति की प्यास बुझाने में) समर्थ नहीं हैं । यह देख । तुझे इन भोगों से क्या प्रयोजन है ?
[८७] हे मुनि ! यह देख, ये भोग महान् भयरूप हैं । भोगों के लिए किसी प्राणी की हिंसा न कर । वह वीर प्रशंसनीय होता है, जो संयम से उद्विग्न नहीं होता । 'यह मुझे भिक्षा नहीं देता' ऐसा सोचकर कुपित नहीं होना चाहिए । थोड़ी भिक्षा मिलने पर दाता की निंदा नहीं करनी चाहिए । गृहस्वामी दाता द्वारा प्रतिबंध करने पर शान्त भाव से वापस लौट जाये । मुनि इस मौन (मुनिधर्म) का भलीभांति पालन करे ।
| अध्ययन-२ उद्देसक-५| [८८] असंयमी पुरुष अनेक प्रकार के शस्त्रों द्वारा लोक के लिए कर्म समारंभ करते हैं । जैसे - अपने लिए, पुत्र, पुत्री, पुत्र-वधू, ज्ञातिजन, धाय, राजा, दास-दासी, कर्मचारी,कर्मचारिणी, पाहुने आदि के लिए तथा विविध लोगों को देने के लिए एवं सायंकालीन तथा प्रातःकालीन भोजन के लिए । इस प्रकार वे कुछ मनुष्यों के भोजन के लिए सन्निधि और सन्निचय करते रहते हैं ।
[८९] संयम-साधना में तत्पर हुआ आर्य, आर्यप्रज्ञ और आर्यदर्शी अनगार प्रत्येक क्रिया उचित समय पर ही करता है । वह 'यह शिक्षा का समय - संधि है' यह देखकर (भिक्षा के लिए जाये) । वह सदोष आहार को स्वयं ग्रहण न करे, न दूसरों से ग्रहण करवाए तथा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन नहीं करे ।
वह (अनगार) सब प्रकार के आमगंध (आधाकर्मादि दोषयुक्त आहार) का परिवर्जन करता हुआ निर्दोष भोजन के लिए पविजन करे ।
[९०] वह वस्तु के क्रय-विक्रय में संलग्न न हो । न स्वयं क्रय करे, न दूसरों से क्रय करवाए और न क्रय करने वाले का अनुमोदन करे । वह भिक्षु कालज्ञ है, बलज्ञ है, मात्रज्ञ है, क्षेत्रज्ञ है, क्षणज्ञ है, विनयज्ञ है, समयज्ञ है, भावज्ञ है । परिग्रह पर ममत्व नहीं रखने वाला, उचित समय पर उचित कार्य करने वाला अप्रतिज्ञ है ।।
[९१] वह राग और द्वेष - दोनों का छेदन कर नियम तथा अनासक्तिपूर्वक जीवन यात्रा करता है । वह (संयमी) वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद प्रोंछन, अवग्रह और कटासन आदि (जो गृहस्थ के लिए निर्मित हों) उनकी याचना करे ।