________________
२१६
आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
देते हैं । जैसे कि इस पुरुष को दण्ड दो या डंडे से पीटो, इसका सिर मूंड दो, इसे डांटो, पीटो, इसकी बाँहें पीछे को बाँध दो, इसके हाथ-पैरों में हथकड़ी और बेड़ी डाल दो, उसे हाडीबन्धन में दे दो, इसे कारागार में बंद कर दो, इसके अंगों को सिकोड़कर मरोड़ दो, इसके हाथ, पैर, कान, सिर और मुंह, नाक-ओठ काट डालो, इसके कंधे पर मार कर आरे से चीर डालो, इसके कलेजे का मांस निकाल लो, इसकी आँखें निकाल लो, इसके दाँत उखाड़ दो, इसके अण्डकोश उखाड़ दो, इसकी जीभ खींच लो, इसे उलटा लटका दो, इसे ऊपर या कुंए में लटका दो, इसे जमीन पर घसीटो, इसे डुबो दो, इसे शूली में पिरो दो, इसके शूल चुभो दो, इसके टुकड़े-टुकड़े कर दो, इसके अंगों को घायल करके उस पर नमक छिड़क दो, इसे मृत्युदण्ड दे दो, इसे सिंह की पूंछ में बाँध दो या उसे बैल की पूंछ के साथ बांध दो, इसे दावाग्नि में झौंक कर जला दो, इसका माँस काट कर कौओं को खिला दो, इस को भोजनपानी देना बंद कर दो, इसे मार-पीट कर जीवनभर कैद में रखो, इसे इनमें से किसी भी प्रकार से बुरी मौत मारो।
इन क्रूर पुरुषों की जो आभ्यन्तर परिषद होती है, जैसे कि माता, पिता, भाई, बहन, पत्नी, पुत्र, पुत्री, अथवा पुत्रवधू आदि । इनमें से किसी का जरा-सा भी अपराध होने पर वे क्रूरपुरुष उसे भारी दण्ड देते हैं । वे उसे शर्दी के दिनों में ठंडे पानी में डाल देते हैं । जोजो दण्ड मित्रद्वेषप्रत्ययिक क्रियास्थान में कहे गए हैं, वे सभी दण्ड वे इन्हें देते हैं । वे ऐसा करके स्वयं अपने परलोक का अहित करते हैं । वे अन्त में दुःख पाते हैं, शोक करते हैं, पश्चात्ताप करते हैं, पीड़ित होते हैं, संताप पाते हैं, वे दुःख, शोक, विलाप पीड़ा, संताप, एवं वध-बंध आदि क्लेशों से निवृत्त नहीं हो पाते ।।
इसी प्रकार वे अधार्मिक पुरुष स्त्रीसम्बन्धी तथा अन्य विषयभोगों में मूर्छित, गृद्ध, अत्यन्त आसक्त तथा तल्लीन हो कर पूर्वोक्त प्रकार से चार, पाँच या छह या अधिक से अधिक दस वर्ष तक अथवा अल्प या अधिक समय तक शब्दादि विषयभोगों का उपभोग करके प्राणियों के साथ वैर का पुंज बांध करके, बहुत-से क्रूरकर्मों का संचय करके पापकर्म के भार से इस तरह दब जाते हैं, जसे कोई लोह का गोला या पत्थर का गोला पानी में डालने पर पानी के तल का अतिक्रमण करके भार के कारण पृथ्वीतल पर बैठ जाता है, इसी प्रकार अतिक्रूर पुरुष अत्यधिक पाप से युक्त पूर्वकृत कर्मों से अत्यन्त भारी, कर्मपंक से अतिमलिन, अनेक प्राणियों के साथ बैर बाँधा हुआ, अत्यधिक अविश्वासयोग्य, दम्भ से पूर्ण, शठता या वंचना में पूर्ण, देश, वेष एवं भाषा को बदल कर धूर्तता करने में अतिनिपुण, जगत् में अपयश के काम करने वाला, तथा त्रसप्राणियों के घातक; भोगों के दलदल में फंसा हुआ वह पुरुष आयुष्यपूर्ण होते ही मरकर रत्नप्रभादि भूमियों को लाँध कर नीचे के नरकतल में जाकर स्थित होता है ।
[६६८] वे नरक अंदर से गोल और बाहर से चौकोन होते हैं, तथा नीचे उस्तरे की धार के समान तीक्ष्ण होते हैं । उनमें सदा घोर अन्धकार रहता है । वे ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र और ज्योतिष्कमण्डल की प्रभा से रहित हैं । उनका भूमितल भेद, चर्बी, माँस, रत्क,
और मवाद की परतों से उत्पन्न कीचड़ से लिप्त है । वे नरक अपवित्र, सड़े हुए मांस से युक्त, अतिदुर्गन्ध पूर्ण और काल हैं । वे सधूम अग्नि के समान वर्ण वाले, कठोर स्पर्श वाले और