Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 216
________________ सूत्रकृत - २/२/- /६६७ २१५ होते हैं, जिनकी बड़ी बड़ी इच्छाएं होती हैं, जो महारम्भी एवं महापरिग्रही होते हैं । वे अधार्मिक, अधर्म का अनुसरण करने या अधर्म की अनुज्ञा देने वाले, अधर्मिष्ठ, अधर्म की ही चर्चा करनेवाले, अधर्मप्रायः जीवन जीनेवाले, अधर्म को ही देखनेवाले, अधर्म-कार्यों में ही अनुरक्त, अधर्ममय शील (स्वभाव) और आचार वाले एवं अधर्म युक्त धंधों से अपनी जीविका उपार्जन करते हुए जीवनयापन करते हैं । इन (प्राणियों) को मारो, अंग काट डालो, टुकड़े-टुकड़े कर दो। वे प्राणियों की चमड़ी उधेड़ देते हैं, प्राणियों के खून से उनके हाथ रंगे रहते हैं, वे अत्यन्त चण्ड, रौद्र और क्षुद्र होते हैं, वे पाप कृत्य करने में अत्यन्त साहसी होते हैं, वे प्रायः प्राणियों को ऊपर उछाल कर शूल पर चढ़ाते हैं, दूसरों को धोखा देते हैं, माया करते हैं, बकवृत्ति से दूसरों को ठगते हैं, दम्भ करते हैं, वे तौल नाप में कम देते हैं, धोखा देने के लिए देश, वेष और भाषा बदल लेते हैं । 'वे दुःशील, दुष्ट-व्रती और कठिनता से प्रसन्न किये जा सकने वाले एवं दुर्जन होते हैं । जो आजीवन सब प्रकार की हिंसाओं से विरत नहीं होते यहाँ तक कि समस्त असत्य, चोरी, अब्रह्मचर्य और परिग्रह से जीवनभर निवृत्त नहीं होते । जो क्रोध से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य तक अठारह ही पाप स्थानों से जीवन भर निवृत्त नहीं होते । वे आजीवन समस्त स्नान, तैलमर्दन, सुगन्धित पदार्थों का लगाना, सुगन्धित चन्दनादि का चूर्ण लगाना, विलेपन करना, मनोहर कर्ण शब्द, मनोज्ञ रूप, रस, गन्ध और स्पर्श का उपभोग करना पुष्पमाला एवं अलंकार धारण करना, इत्यादि सब का त्याग नहीं करते, जो समस्त गाड़ी, रथ, यान सवारी, डोली, आकाश की तरह अधर रखी जाने वाली सवारी आदि वाहनों तथा शय्या, आसन, वाहन, भोग और भोजन आदि को विस्तृत करने की विधि के जीवन भर नहीं छोड़ते, जो सब प्रकार के क्रय-विक्रय तथा माशा, आधा माशा, और तोला आदि व्यवहारों से जीवनभर निवृत्त नहीं होते, जो सोना, चांदी, धन, धान्य, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल आदि सब प्रकार के संग्रह से जीवन भर निवृत्त नहीं होते, जो सब प्रकार के खोटे तौल नाप को आजीवन नहीं छोड़ते, जो सब प्रकार के आरम्भ समारम्भों का जीवनभर त्याग नहीं करते । सभी प्रकार के दुष्कृत्यों को करने-कराने से जीवनभर निवृत्त नहीं होते, जो सभी प्रकार की पचन - पाचन आदि क्रियाओं से आजीवन निवृत्त नहीं होते, तथा जो जीवनभर प्राणियों को कूटने, पीटने, धमकाने, प्रहार करने, वध करने और बाँधने तथा उन्हें सब प्रकार सेक्लेश देने से निवृत्त नहीं होते, ये तथा अन्य प्रकार के सावद्य कर्म हैं, जो बोधिबीजनाशक हैं, तथा दूसरे प्राणियों को संताप देने वाले हैं, जिन्हें क्रूर कर्म करनेवाले अनार्य करते हैं, उन से जो जीवनभर निवृत्त नहीं होते । जैसे कि कई अत्यन्त क्रूर पुरुष चावल, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, निप्पाव कुलत्थी, चंवला, परिमंथक आदि अकारण व्यर्थ ही दण्ड देते हैं । इसी प्रकार तथाकथित अत्यन्त क्रूर पुरुष तीतर, बटेर, लावक, कबूतर, कपिंजल, मृग, भैसे, सूअर, ग्राह, गोह, कछुआ, सरीसृप आदि प्राणियों को अपराध के बिना व्यर्थ ही दण्ड देते हैं । उन की जो बाह्य परिषद् होती है, जैसे दास, या संदेशवाहक अथवा दूत, वेतन या दैनिक वेतन पर रखा गया नौकर, बटाई पर काम करने वाला अन्य काम-काज करने वाला एवं भोग की सामग्री देने वाला, इत्यादि । इन लोगों में से किसी का जरा-सा भी अपराध हो जाने पर ये स्वयं उसे भारी दण्ड

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