Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 249
________________ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद (फिर) भगवान् गौतम स्वामी ने (उदक निर्ग्रन्थ से) कहा- कई श्रमणोपासक ऐसे भी होते हैं, जो पहले से इस प्रकार कहते हैं कि हम मुण्डित हो कर गृहस्थावास को छोड़ कर अगर धर्म में प्रव्रजित होने में अभी समर्थ नहीं हैं, और न ही हम चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा, इन पर्वतिथियों में प्रतिपूर्ण पौषधव्रत का पालन करने में समर्थ हैं । हम तो अन्तिम समय में अपश्चिम- मारणान्तिक संलेखना के सेवन से कर्मक्षय करने की आराधना करते हुए आहार- पानी का सर्वथा प्रत्याख्यान करके दीर्घकाल तक जीने की या शीघ्र ही मरने की आकांक्षा न करते हुए विचरण करेंगे । उस समय हम तीन करण और तीन योग से समस्त प्राणातिपात, समस्त मृषावाद, समस्त अदत्तादान, समस्त मैथुन और सर्वपरिग्रह का प्रत्याख्यान करेंगे । हमारे लिए कुछ भी आरम्भ मत करना, और न ही कराना ।' उस संलेखनाव्रत में हम अनुमोदन का भी प्रत्याख्यान करेंगे । इस प्रकार संल्लेखनाव्रत में स्थित साधक बिना खाए-पीए, बिना स्नानादि किये, पलंग आदि आसन से उतर कर सम्यक् प्रकार से संल्लेखना की आराधना करते हुए कालधर्म को प्राप्त हो जाएँ तो उनके मरण के विषय में क्या कहना होगा ? यही कहना होगा कि उन्होंने अच्छी भावनाओं में मृत्यु पाई है । वे प्राणी भी कहलाते हैं, वे स भी कहलाते हैं, वे महाकाय और चिरस्थिति वाले भी होते हैं, इन की संख्या भी बहुत है, जिनकी हिंसा का प्रत्याख्यान श्रमणोपासक करता है, किन्तु वे प्राणी अल्पतर हैं, जिनकी हिंसा का प्रत्याख्यान वह नहीं करता है । ऐसी स्थिति में श्रमणोपासक महान् सकायिक हिंसा से निवृत्त है, फिर भी आप उसके प्रत्याख्यान को निर्विषय बतलाते हैं । अतः आपका यह मन्तव्य न्यायसंगत नहीं है । २४८ भगवान् श्री गौतमगणधर ने पुनः कहा- इस संसार में कई मनुष्य ऐसे होते हैं, जो बड़ी-बड़ी इच्छाओं से युक्त होते हैं, तथा महारम्भी, महापरिग्रही एवं अधार्मिक होते । यहाँ तक कि वे बड़ी कठिनता से प्रसन्न किये जा सकते हैं । वे जीवनभर अधर्मानुसारी, अधर्मसेवी, अतिहिंसक, अधर्मनिष्ठ यावत् समस्त परिग्रहों से अनिवृत्त होते हैं । श्रमणोपासक ने इन प्राणियों को दण्ड देने का प्रत्याख्यान व्रतग्रहण के समय से लेकर मृत्युपर्यन्त किया है । वे अधार्मिक मृत्यु का समय आने पर अपनी आयु का त्याग कर देते हैं, और अपने पापकर्म अपने साथ ले जा कर दुर्गतिगामी होते हैं । वे प्राणी भी कहलाते हैं, त्रस भी कहलाते हैं, तथा वे महाकाय और चिरस्थितिक भी कहलाते हैं । ऐसे त्रसप्राणी संख्या में बहुत अधिक हैं, जिनके विषय में श्रमणोपासक का प्रध्याख्यान सुप्रत्याख्यान होता है, वे प्राणी अल्पतर हैं, जिनके विषय में श्रमणोपासक का प्रत्याख्यान नहीं होता । उन प्राणियों को मारने का प्रत्याख्यान श्रमणोपासक व्रतग्रहण समय से लेकर मरण- पर्यन्त करता है । इस प्रकार से श्रमणोपासक उस महती सप्राणिहिंसा से विरत हैं, फिर भी आप श्रावक के प्रत्याख्यान को निर्विषय बतलाते हैं । आपका यह मन्तव्य न्याययुक्त नहीं है । भगवान् श्री गौतम आगे कहने लगे इस विश्व में ऐसे भी शान्तिप्रधान मनुष्य होते हैं, जो आरम्भ एवं परिग्रह से सर्वथा रहित हैं, धार्मिक हैं, धर्म का अनुसरण करते हैं या धर्माचरण करने की अनुज्ञा देते हैं । वे सब प्रकार के प्राणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह से तीन करण; तीन योग से जीवनपर्यन्त विरत रहते हैं । उन प्राणियों को दण्ड देने का श्रमणोपासक ने व्रतग्रहण करने के दिन से लेकर मरणपर्यन्त प्रत्याख्यान किया है ।

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