Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 237
________________ २३६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [७१४] यह जो औदारिक, आहारक, कार्मण, वैक्रिय एवं तैजस शरीर है; ये पांचों शरीर एकान्ततः भिन्न नहीं हैं, अथवा सर्वथा भिन्न-भिन्न ही हैं, तथा सब पदार्थों में सब पदार्थों की शक्ति विद्यमान है, अथवा नहीं ही है; ऐसा एकान्तकथन भी नहीं करना चाहिए । [७१५] क्योंकि इन दोनों प्रकार के एकान्त विचारों से व्यवहार नहीं होता । अतः इन दोनों एकान्तमय विचारों का प्ररूपण करना अनाचार समझना चाहिए । [७१६] लोक नहीं है या अलोक नहीं है ऐसी संज्ञा (नहीं रखनी चाहिए अपितु लोक है और अलोक है, ऐसी संज्ञा रखनी चाहिए । [७१७] जीव और अजीव पदार्थ नहीं हैं, ऐसी संज्ञा नहीं रखनी चाहिए, अपितु जीव और अजीव पदार्थ हैं, ऐसी संज्ञा रखनी चाहिए । [७१८] धर्म-अधर्म नहीं है, ऐसी मान्यता नही रखनी चाहिए, किन्तु धर्म भी है और अधर्म भी है ऐसी मान्यता रखनी चाहिए । [७१९] बन्ध और मोक्ष नहीं है, यह नहीं मानना चाहिए, अपितु बन्ध है और मोक्ष भी है, यही श्रद्धा ग्वनी चाहिए । [७२०] पुण्य और पाप नहीं है, ऐसी बुद्धि रखना उचित नहीं, अपितु पुण्य भी है और पाप भी है, ऐसी बुद्धि रखना चाहिए । [७२१] आश्रव और संवर नहीं है, ऐसी श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए, अपितु आश्रव भी है, संवर भी है, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए । [७२२] वेदना और निर्जरा नहीं हैं, ऐसी मान्यता रखना ठीक नहीं है किन्तु वेदना और निर्जरा है, यह मान्यता रखनी चाहिए । [७२३] क्रिया और अक्रिया नहीं है, ऐसी संज्ञा नहीं रखनी चाहिए, अपितु क्रिया भी है, अक्रिया भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए । [७२४] क्रोध और मान नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, अपितु क्रोध भी है, और मान भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए । [७२५] माया और लोभ नहीं हैं, इस प्रकार की मान्यता नहीं रखनी चाहिए, किन्तु माया है और लोभ भी है, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए । [७२६] राग और द्वेष नहीं है, ऐसी विचारणा नहीं रखनी चाहिए, किन्तु राग और द्वेष है, ऐसी विचारणा रखनी चाहिए । [७२७] चार गति वाला संसार नहीं है, ऐसी श्रद्धा नहीं रखनी चाहिए, अपितु चातुर्गति संसार है, ऐसी श्रद्धा रखनी चाहिए । [७२८] देवी और देव नहीं हैं, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, अपितु देव-देवी हैं, ऐसी मान्यता रखनी चाहिए । [७२९] सिद्धि या असिद्धि नहीं है, ऐसी बुद्धि नहीं रखनी चाहिए, अपितु सिद्धि भी है और असिद्धि भी है, ऐसी बुद्धि रखनी चाहिए । [७३०] सिद्धि जीव का निज स्थान नहीं है, ऐसी खोटी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत सिद्धि जीव का निजस्थान है, ऐसा सिद्धान्त मानना चाहिए ।। [७३१] साधु नहीं है और असाधु नहीं है, ऐसी मान्यता नहीं रखनी चाहिए, प्रत्युत

Loading...

Page Navigation
1 ... 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257