Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 213
________________ २१२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद या उसके पुत्रों पर कुपित होकर उनके ऊँटों, गायों-बैलों, घोड़ों, गधों के जंघा आदि अंगों को स्वयं काट देता है, दूसरों से उनके अंग कटवा देता है, जो उन गृहस्थादि के पशुओं के अंग काटता है, उसे अच्छा समझता है । इस महान् पापकर्म के कारण वह जगत् में अपने आपको महापापी के रूप में प्रसिद्ध कर देता है ।। (४) कोई पुरुष किसी अपमानादिजनक शब्दादि के कारण से, अथवा किसी गृहपतिद्वारा खराब या कम अन्न दिये जाने अथवा उससे अपना इष्ट स्वार्थ-सिद्ध न होने से उस पर अत्यंत बिगड़ कर उस गृहस्थ की अथवा उसके पुत्रों की उष्ट्रशाला, गोशाला, अश्वशाला अथवा गर्दभशाला कांटों की शाखाओं से ढक कर स्वयं उसमें आग लगा कर जला देता है, दूसरों से लवा देता है या जो उनमें आग लगवा कर जला देने वाले को अच्छा समझता है । इस महापाप से स्वयं को महापापी के नाम से विख्यात कर देता है ।। (५) कोई व्यक्ति किसी भी प्रतिकूल शब्दादि के कारण, अथवा गृहपति द्वारा खराब, तुच्छ या अल्प अन्न आदि दिये जाने से अथवा उससे अपने किसी मनोरथ की सिद्धि न होने से इस पर क्रुद्ध होकर उस से या उसके पुत्रों के कुण्डल, मणि या मोती को स्वयं हरण करता है, दूसरे हरण कराता है, या हरण करनेवाले को अच्छा जानता है । इस महापाप के कारण जगत् में महापापी के रूप में स्वयं को प्रसिद्ध कर देता है । (६) कोई पुरुष श्रमणों या माहनों के किसी भक्त से सड़ा-गला, तुच्छ या घटिया या थोड़ा सा अन्न पाकर अथवा मद्य की हंडिया न मिलने से या किसी अभीष्ट स्वार्थ सिद्ध न होने से अथवा किसी भी प्रतिकूल शब्दादि के कारण उन श्रमणों या माहनों के विरुद्ध होकर उनका छत्र, दण्ड, उपकरण, पात्र, लाठी, आसन, वस्त्र, पर्दा, चर्म, चर्म-छेदनक या चर्मकोश स्वयं हरण करता है, दूसरे से हरण कराता है, अथवा हरण करने वाले को अच्छा जानता है । इस महापाप के कारण स्वयं को महापापी प्रसिद्ध कर देता है । (७) कोई-कोई व्यक्ति तो जरा भी विचार नहीं करता, जैसे कि वह अकारण ही गृहपति या उनके पुत्रों के अन्न आदि को स्वयमेव आग लगा कर भस्म कर देता है, अथवा वह दूसरे से भस्म करा देता है, या जो भस्म करता है, उसे अच्छा समझता है । इस महापापकर्म करने के कारण जगत् में वह महापापी के रूप में बदनाम होता है । (८) कोई-कोई व्यक्ति अपने कृत दुष्कर्मों के फल का किचित् भी विचार नहीं करता, जैसे कि-वह अकारण ही किसी गृहस्थ या उसके पुत्रों के ऊंट, गाय, घोड़ों या गधों के जंघादि अंग स्वयं काट डालता है, या दूसरे से कटवाता है, अथवा जो उनके अंग काटता है, उसकी प्रशंसा एवं अनुमोदना करता है । अपनी इस पापवृत्ति के कारण वह महापापी के नाम से जगत् में पहिचाना जाता है । (९) कोई व्यक्ति ऐसा होता है, जो स्वकृतकों के परिणाम का थोड़ा-सा विचार नहीं करता, जैसे कि वह किसी गृहस्थ या उनके पुत्रों की उष्ट्रशाला, गोशाला, घुड़साल या गर्दभशाला को सहसा कंटीली झाड़ियों या डालियों से ढंक कर स्वयं आग लगाकर उन्हें भस्म कर डालता है, अथवा दूसरे को प्रेरित करके भस्म करवा को डालता है, या जो उनकी उक्त शालाओं को इस प्रकार आग लगा कर भस्म करता है, उसको अच्छा समझता है । (१०) कोई व्यक्ति पापकर्म करता हुआ उसके फल का विचार नहीं करता । वह

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