Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 211
________________ २१० आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद वे विप्रतिपन्न एवं अनार्य ही हैं । वे मृत्यु का समय आने पर मर कर आसुरिक किल्विषिक स्थान में उत्पन्न होते हैं । वहाँ से आयु पूर्ण होते ही देह छूटने पर वे पुनः पुनः ऐसी योनियों में जाते हैं जहाँ वे बकरे की तरह मूक, या जन्म से अंधे, या जन्म से ही गूंगे होते हैं । [६६३] कोई पापी मनुष्य अपने लिए अथवा अपने ज्ञातिजनों के लिए अथवा कोई अपना घर बनाने के लिए या अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए अथवा अपने नायक या परिचित जन तथा सहवासी के लिए निम्नोक्त पापकर्म का आचरण करने वाले बनते हैंअनुगामिक बनकर, उपचरक बनकर, प्रातिपथिक बनकर, सन्धिच्छेदक बनकर, ग्रन्थिच्छेदक बनकर औरभ्रिक बनकर, शौकरिक बनकर, वागुरिक बनकर, शाकुनिक बनकर, मात्स्यिक बनकर, गोपालक बनकर, गोधातक बनकर, श्वपालक बनकर, या शौवान्तिक बनकर । (१) कोई पापी पुरुष उसका पीछा करने की नीयत से साथ में चलने की अनुकूलता समझा कर उसके पीछे-पीछे चलता है, और अवसर पा कर उसे मारता है, हाथ-पैर आदि अंग काट देता है, अंग चूर चूर कर देता है, विडम्बना करता है, पीड़ित कर या डरा-धमका कर अथवा उसे जीवन से रहित करके (उसका धन लूट कर) अपना आहार उपार्जन करता है । इस प्रकार वह महान् (क्रूर) पाप कर्मों के कारण (महापापी के नाम से) अपने आपको जगत् में प्रख्यात कर देता है । (२) कोई पापी पुरुष किसी धनवान् की अनुचरवृत्ति, सेवकवृत्ति स्वीकार करके उसी को मार-पीट कर, उसका छेदन, भेदन, एवं प्रहार करके, उसकी विडम्बना और हत्या करके उसका धनहरण कर अपना आहार उपार्जन करता है । इस प्रकार वह महापापी व्यक्ति बड़ेबड़े पापकर्म करके महापापी के रूप में अपने आपको प्रख्यात कर लेता है । (३) कोई पापी जीव किसी धनिक पथिक को सामने से आते देख उसी पथ पर मिलता है, तथा प्रातिपथिक भाव धारण करके पथिका का मार्ग रोक कर उसे मारपीट करके यावत् उसका धन, लूट कर अपना आहार-उपार्जन करता है । इस प्रकार महापापी के नाम से प्रसिद्ध होता है । (४) कोई पापी जीव सेंध डाल कर उस धनिक के परिवार को मार-पीट कर, यावत् उसके धन को चुरा कर अपनी जीविका चलाता है । इस प्रकार का स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध करता है । (५) कोई पापी व्यक्ति धनाढ्यों के धन की गांठ काटने का धंधा अपना कर धनिकों की गांठ काटता रहता है । वह मारता-पीटता है, यावत् उसका धन हरण कर लेता है, और इस तरह अपना जीवन-निर्वाह करता है । इस प्रकार स्वयं को महापापी के रूप में विख्यात कर लेता है । (६) कोई पापात्मा भेड़ों का चरवाहा बन कर उन भेड़ों में से किसी को या अन्य किसी भी त्रस प्राणी को मार-पीट कर यावत् अपनी आजीविका चलाता है । इस प्रकार स्वयं को महापापी के नाम से प्रसिद्ध कर लेता है । (७) कोई पापकर्मा जीव सूअरों को पालने का या कसाई का धन्धा अपना कर भैसे, सूअर या दूसरे त्रस प्राणी को मार-पीट कर, यावत् अपनी आजीविका का निर्वाह करता है ।

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