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बाँहें फैलाकर चलते थे, उन्हें कन्धों पर रखकर खड़े नहीं होते थे ।।
[२८७] ज्ञानवान् महामाहन महावीर ने इस विधि के अनुरूप आचरण किया । उपदेश दिया । अतः मुमुक्षुजन इसका अनुमोदन करते हैं ।। ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन- ९ - उद्देशक - २
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[ २८८] "भंते ! चर्या के साथ-साथ आपने कुछ आसन और वासस्थान बताये थे, अतः मुझे आप उन शयनासन को बताएँ, जिनका सेवन भगवान् ने किया था " ।
[ २८९] भगवान् कभी सूने खण्डहरों में, कभी सभाओं, प्याउओं, पण्य-शालाओं में निवास करते थे । अथवा कभी लुहार, सुथार, सुनार आदि के कर्मस्थानों में और पलाल पुँज के मंच के नीचे उनका निवास होता था ।।
[२९०] भगवान् कभी यात्रीगृह में, आरामगृह में, गाँव या नगर में अथवा कभी श्मशान में, कभी शून्यगृह में तो कभी वृक्ष के नीचे ही ठहर जाते थे ||
[२९१] त्रिजगत्वेत्ता मुनीश्वर इन वासस्थानों में साधना काल के बारह वर्ष, छह महीने, पन्द्रह दिनों में शान्त और समत्वयुक्त मन से रहे । वे रात-दिन प्रत्येक प्रवृत्ति में यतनाशील रहते थे तथा अप्रमत्त और समाहित अवस्था में ध्यान करते थे ।
[२९२] भगवान् निद्रा भी बहुत नहीं लेते थे । वे खड़े होकर अपने आपको जगा लेते थे । ( कभी जरा-सी नींद ले लेते किन्तु सोने के अभिप्राय से नहीं सोते थे ।) [२९३] भगवान् क्षण भर की निद्रा के बाद फिर जागृत होकर ध्यान में बैठ जाते थे । कभी-कभी रात में मुहूर्त भर बाहर - घूमकर पुनः ध्यान - लीन हो जाते थे ।।
[२९४] उन आवास में भगवान् को अनेक प्रकार के भयंकर उपसर्ग आते थे । कभी सांप और नेवला आदि प्राणी काट खाते, कभी गिद्ध आकर माँस नोचते ||
[२९५] कभी उन्हें चोर या पारदारिक आकर तंग करते, अथवा कभी ग्रामरक्षक उन्हें कष्ट देते, कभी कामासक्त स्त्रियाँ और कभी पुरुष उपसर्ग देते थे ।।
[२९६] भगवान् ने इहलौकिक और पारलौकिक नाना प्रकार के भयंकर उपसर्ग सहन किये । वे अनेक प्रकार के सुगन्ध और दुर्गन्ध में तथा प्रिय और अप्रिय शब्दों में हर्ष - शोक रहित मध्यस्थ रहे ||
[२९७] उन्होंने सदा समिति युक्त वे अरति और रति को शांत कर देते थे । [२९८] कुछ लोग आकर पूछते
अकेले घूमने वाले लोग रात में आकर पूछते दुर्व्यवहार करते, फिर भी भगवान् समाधि में नहीं उठता ।।
होकर अनेक प्रकार के स्पर्शो को सहन किया । वे महामाहन महावीर बहुत ही कम बोलते थे । "तुम कौन हो ? यहाँ क्यों खड़े हो ?" कभी तब भगवान् कुछ नहीं बोलते, इससे रुष्ट होकर लीने रहते, परन्तु प्रतिशोध लेने का विचार भी
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[२९९] अन्तर में स्थित भगवान् से पूछा “अन्दर कौन है ?' भगवान् ने कहा 'मैं भिक्षु हूँ ।' यदि वे क्रोधान्ध होते' तब भगवान् वहाँ से चले जाते । यह उनका उत्तम धर्म है । वे मौन रहकर ध्यान में लीन रहते थे ।
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[ ३०० ] शिशिरऋतु में ठण्डी हवा चलने पर कई लोग कांपने लगते, उस ऋतु में
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