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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
इसे जानकर जो न उत्पन्न होता है और न मरता है, वह महावीर है ।
[६१४] जिसके पूर्वकृत [कमी नहीं है, वह महावीर मरता नहीं है । वह लोक में प्रिय स्त्रियों को वैसे ही पार कर जाता है जैसे वायु अग्नि को पार करता है ।
[६१५] जो स्त्री सेवन न करते हैं वे ही आदि मोक्ष हैं । बन्धन मुक्त वे मनुष्य जीवन की आकांक्षा नहीं करते हैं ।
[६१६] जो कर्मो के सम्मुखीभूत/साक्षी होकर मार्ग का अनुशासन करते हैं, वे जीवन को पीठ दिखाकर कर्म-क्षय करते हैं ।
[६१७] आशारहित, संयत, दान्त दृढ़ और मैथुन-विरत पूजा की आकांक्षा नहीं करते हैं । वे संयमी-प्राणियों में उनके योग्यतानुसार अनुसासन करते हैं ।
[६१८] जो स्त्रोत छिन्न, अनाविल/निर्मल है वह नीवार/प्रलोभन से लिप्त न हो । अनाविल एवं दान्त सदा अनुपम सन्धि/दशा प्राप्त करता है ।
[६१९] अप्रमत्त और खेदज्ञ पुरुष मन, वचन और काया से किसी का विरोध न करे ।
[६२०] जो आकांक्षा का अन्त करता है वह मनुष्यों का चक्षु है । उस्तरा अन्त से चलता है । चक्र भी अन्त/धूरी से घूमता है ।।
[६२१] धीर अन्त का सेवन करते हैं अतः वे अन्तकर हो जाते हैं । वे नर इस मनुष्य जीवन में धर्माराधना कर
[६२२] मुक्त होते हैं अथवा उत्तरीय देव होते हैं, ऐसा मैंने सुना है । कुछ लोगों से मैंने यह भी सुना है कि अमनुष्यों को वैसा नहीं होता ।
[६२३] कुछ लोगों ने कहा है कि मनुष्य] दुःखों का अन्त करते हैं । पुनः कुछ लोग कहते हैं कि यह मनुष्य शरीर दुर्लभ है ।
[६२४] वहाँ से च्युत जीव को सम्बोधि दुर्लभ है । धर्मार्थ के उपदेष्टा पूज्य पुरुष का योग भी दुर्लभ है ।
[६२५] जो प्रतिपूर्ण अनुपम, शुद्ध धर्म की व्याख्या करते हैं और जो अनुपम धर्म का स्थान है उसके पुनर्जन्म की कथा कहाँ ।
[६२६] मेघावी तथागत पुनः कहाँ और कब उत्पन्न होते हैं । अप्रतिज्ञ तथागत लोक के अनुत्तर नेत्र है।
[६२७] काश्यप ने उस अनुत्तर स्थान का प्रतिपादन किया है जिसके आचरण से कुछ साधक निवृत्त/उपशान्त होकर निष्ठा/मोक्ष प्राप्त करते हैं ।
[६२८] पंडित/पुरुष कर्म-निर्धात/निर्जरा के लिए प्रवर्तक वीर्य को प्राप्तकर पूर्व कृत कर्म को समाप्त करे एवं नए कर्म न करे ।
[६२९] महावीर अनुपूर्व कर्म-रज का [बंध] नहीं करता । वह रज के सम्मुख होकर कर्म क्षय कर जो मत है उसे प्राप्त कर लेता है ।
[६३०] जो सर्व साधुओं को मान्य है वह मत निःशल्य है, उसकी साधना कर अनेक जीव तीर्ण हुए अथवा देव हुए हैं ।