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सूत्रकृत-१/१५/-/६३१
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[६३१] सुव्रत वीर अतीत में हुए हैं एवं अनागतमें भी होंगे । वे स्वयं दुर्निबोध मार्ग के अन्त को प्रगट कर तीर्ण हो जाते हैं । -ऐसा मैं कहता हूँ । अध्ययन-१५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
अध्ययन-१६ गाथा [६३२] भगवान् ने कहा वह दान्त, शुद्ध चैतन्यवान् और देह का विसर्जन करने वाला पुरुष माहन, श्रमण, भिक्षु और निर्ग्रन्थ शब्द से सम्बोधित होता है | पूछा- भदन्त ! दान्त शुद्ध चैतन्यवान् आदि को निर्ग्रन्थ क्यों कहा जाता है । महामुने ! वह हमें कहें ।
जो सर्वपाप कर्मो से विरत है, प्रेय द्वेष, कलह, आरोप, पैशुन्य, परपरिवाद, अरतिरति, माया-मृषा एवं मिथ्या दर्शन शल्य से विरत, समित, सहित, सदा संयत है एवं जो क्रोधी एवं अभिमानी नहीं है वह माहन कहलाता है ।
यहाँ भी श्रमण-अनिश्रित एवं आशंसा मुक्त होता है । जो आदान, अतिपात, मिथ्यावाद, समागत क्रोध, मान, माया, लोभ प्रेय और द्वेष-इस प्रकार जो-जो आत्म-प्रदोष के हेतु हैं उस-उस आदान से जो पूर्व में ही प्रतिविरत होता है, वह दान्त, शुद्ध चैतन्यवान् और देह विसर्जक 'श्रमण' कहलाता है ।
यहाँ भी भिक्षु- जो मन से न उन्नत है न अवनत, जो दान्त, शुद्ध चैतन्यवान् और देह विसर्जक है, विविध परीषहों एवं उपसर्गों को पराजित कर अध्यात्मयोग एवं शुद्ध स्वरूप में स्थित है, स्थितात्मा, विवेकी और परदक्तभोजी है वह 'भिक्षु' कहलाता है ।
यहाँ भी निर्ग्रन्थ-एकाकी, एकविद्, बुद्ध, स्त्रोत छिन्न, सुसंयत, सुसमित, सुसामयिक, आत्म प्रवाद प्राप्त, विद्वान् द्विविध स्त्रोत परिछिन्न, पूजासत्कार का अनाकांक्षी, धर्मार्थी, धर्मविद्, मोक्ष मार्ग के लिए समर्पित, सम्यक्चारी, दान्त, शुद्ध चैतन्यवान् और देह-विसर्जक 'निर्ग्रन्थ' कहलाता है । उसे ऐसे ही जानो जैसे मैंने भदन्त से जाना । -ऐसा मैं कहता हूँ ।
अध्ययन-१६ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
ॐ श्रुतस्कन्ध-१ हिन्दी अनुवाद पूर्ण क
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ॐ श्रुतस्कन्ध-२
( अध्ययन-१ पुण्डरीक ) [६३३] 'हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है-'उन भगवान् ने ऐसा कहा था'-'इस आहेत प्रवचन में पौण्डरीक नामक एक अध्ययन है, उसका यह अर्थ उन्होंने बताया जैसे कोई पुष्करिणी है, जो अगाध जल से परिपूर्ण है, बहुत कीचड़वाली है, बहुत पानी होने से अत्यन्त गहरी है अथवा बहुत-से कमलों से युक्त है । वह पुष्करिणी नाम को सार्थक करनेवाली या यथार्थ नाम वाली, अथवा जगत् में लब्धप्रतिष्ठ है । वह प्रचुर पुण्डरीकों से सम्पन्न है । वह