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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
और सेनापतिपुत्र । इनमें से कोई एक धर्म में श्रद्धालु होता है । उस धर्म-श्रद्धालु पुरुष के पास श्रमण या ब्राह्मण धर्म प्राप्ति की इच्छा से जाने का निश्चय करते हैं । किसी एक धर्म की शिक्षा देने वाले वे श्रमण और ब्राह्मण यह निश्चय करते हैं कि हम इस धर्मश्रद्धालु पुरुष के समक्ष अपने इस धर्म की प्ररूपणा करेंगे । वे उस धर्मश्रद्धालु पुरुष के पास जाकर कहते हैं-हे संसारभीरु धर्मप्रेमी ! अथवा भय से जनता के रक्षक महाराज ! मैं जो भी उत्तम धर्म की शिक्षा आप को दे रहा हूँ उसे ही आप पूर्वपुरुषों द्वारा सम्यक्प्रकार से कथित और सुप्रज्ञप्त समझें ।"
वह धर्म इस प्रकार है-पादतल से ऊपर और मस्तक के केशों के अग्रभाग से नीचे तक तथा तिरछा-चमड़ी तक जो शरीर है, वही जीव है । यह शरीर ही जीव का समस्त पर्याय है । इस शरीर के जीने तक ही यह जीव दजीता रहता है, शरीर के मर जाने पर यह नहीं जीता, शरीर के स्थित रहने तक ही यह जीव स्थित रहता है और शरीर के नष्ट हो जाने पर यह नष्ट हो जाता है । इसलिए जब तक शरीर है, तभी तक यह जीवन है । शरीर जब मर जाता है तब दूसरे लोग उसे जलाने के लिए ले जाते हैं, आग से शरीर के जल जाने पर हडिडयां कपोत वर्ण की हो जाती हैं । इसके पश्चात् मृत व्यक्ति को श्मशान भूमि में पहुंचाने वाले जघन्य चार पुरुष मृत शरीर को ढोने वाली मंचिका को ले कर अपने गांव में लौट आते हैं । ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट हो जाता है कि शरीर से भिन्न कोई जीव नामक पदार्थ नहीं है।
जो लोग युक्तिपूर्वक यह प्रतिपादन करते हैं कि जीव पृथक् है और शरीर पृथक् है, वे इस प्रार पृथक् पृथक् करके नहीं बता सकते कि यह आत्मा दीर्ध है, यह ह्रस्व है, यह चन्द्रमा के समान परिमण्डलाकार है, अथवा गेंद की तरह गोल है, यह त्रिकोण है, या चतुष्कोण है, या यह षट्कोण या अष्टकोण है, यह आयत है, यह काला, नीला, लाल, पीला या श्वेत है; यह सुगन्धित है या दुर्गन्धित है, यह तिक्त है या कड़वा है अथवा कसैला, खट्टा या मीठा है; अथवा यह कर्कश है या कोमल है अथवा भारी है या हलका अथवा शीतल है या उष्ण है, स्निग्ध है अथवा रूक्ष है ।
इसलिए जो लोग जीव को शरीर से भिन्न नहीं मानते, उनका मत ही युक्तिसंगत है ।
जिन लोगों का यह कथन है कि जीव अन्य है, और शरीर अन्य है, वे जीव को उपलब्ध नहीं करा पाते-(१) जैसे- कि कोई व्यक्ति म्यान से तलवार को बाहर निकाल कर कहता है- यह तलवार है, और यह म्यान है । इसी प्रकार कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर से जीव को पृथक् करके दिखला सके कि यह आत्मा है और यह शरीर है ।
(२) जैसे कि कोई पुरुष मुंज नामक घास से इषिका को बाहर निकाल कर बतला देता है कि यह मुंज है, और यह इषिका है । इसी प्रकार ऐसा कोई उपदर्शक पुरुष नहीं है, जो यह बता सके कि यह आत्मा है और यह शरीर है ।" ।
(३) जैसे कोई पुरुष मांस से हड्डी को अलग-अलग करके बतला देता है कि यह मांस है और यह हड्डी है ।" इसी तरह कोई ऐसा उपदर्शक पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा को अलग करके दिखला दे कि यह आत्मा है और यह शरीर है ।" .
(४) जैसे कोई पुरुष हथेली से आँबले को बाहर निकाल कर दिखला देता है कि यह हथेली है, और यह आँवला है ।" इसी प्रकार कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा