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आचार-२/१/१/३/३५२
आहार की हो रही हो, तो वैसे आहार के मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
[३५३] जो भिक्षा या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होना चाहता है, वह अपने सब धर्मोपकरण लेकर आहारप्राप्ति उद्देश्य से गृहस्थ के घर में प्रवेश करे या निकले ।
साधु या साध्वी बाहर मलोत्सर्गभूमि या स्वाध्यायभूमि में निकलते या प्रवेश समय अपने सभी धर्मोपकरण लेकर वहाँ से निकले या प्रवेश करे । एक ग्राम से दूसरे ग्राम विचरण करते समय अपने सब धर्मोपकरण साथ में लेकर ग्रामानुग्राम विहार करे ।
[३५४] यदि वह भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि बहुत बड़े क्षेत्र में वर्षा बरसती है, विशाल प्रदेश में अन्धकार रूप धुंध पड़ती दिखाई दे रही है, अथवा महावायु से धूल उड़ती दिखाई देती है, तिरछे उड़ने वाले या त्रस प्राणी एक साथ मिलकर गिरते दिखाई दे रहे हैं, तो वह ऐसा जानकर सब धर्मोपकरण साथ में लेकर आहार के निमित्त गृहस्थ के घर में न प्रवेश करे और न निकले । इसी प्रकार बाहर विहार भूमि या विचार भूमि में भी निष्क्रमण या प्रवेश न करे; न ही एक ग्राम से दूसरे ग्राम को विहार करे ।
[३५५] भिक्षु एवं भिक्षुणी इन कुलों को जाने, जैसे कि चक्रवर्ती आदि क्षत्रियों के कुलं, उनसे भिन्न अन्य राजाओं के कुल, कुराजाओं के कुल, राजभृत्य दण्डपाशिक आदि के कुल, राजा के मामा, भानजा आदि सम्बन्धियों के कुल, इन कुलों के घर से, बाहर या भीतर जाते हुए, खड़े हुए या बैठे हुए, निमन्त्रण किये जाने या न किए जाने पर, वहाँ से प्राप्त होने वाले अशनादि आहार को ग्रहण न करे ।
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अध्ययन- १ उद्देशक - ४
[३५६] गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रवेश करते समय भिक्षु या भिक्षुणी यह जो कि इस संखडि के प्रारम्भ में मांस या मत्स्य पकाया जा रहा है, अथवा मांस या मत्स्य छीलकर सुखाया जा रहा है; विवाहोत्तर काल में नववधू के प्रवेश या पितृगृह में वधू के पुनः प्रवेश के उपलक्ष्य में भोज हो रहा है, या मृतक - सम्बन्धी भोज हो रहा है, अथवा परिजनों के सम्मानार्थ भोज हो रहा है । ऐसी संखडियों से भिक्षाचरों को भोजन लाते हुए देखकर संयमशील भिक्षु को वहाँ भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए । क्योंकि वहाँ जाने में अनेक दोषों की सम्भावना है, जैसे कि -
मार्ग में बहुत से प्राणी, बहुत-सी हरियाली, बहुत-से ओसकण, बहुत पानी, बहुतसे- कीड़ीनगर, पाँच वर्ण की नीलण - फूलण है, काई आदि निगोद के जीव हैं, सचित्तपानी से भीगी हुई मिट्टी है, मकड़ी के जाले हैं, उन सबकी विराधना होगी; वहाँ बहुत-से श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र, याचक आदि आए हुए हैं, आ रहे हैं तथा आएँगे, संखडिस्थल चरक आदि जनता की भीड़ से अत्यन्त घिरा हुआ है; इसलिए वहाँ प्राज्ञ साधु का निर्गमन-प्रवेश का व्यवहार उचित नहीं है; क्योंकि वहाँ प्राज्ञ भिक्षु की वाचना, पृच्छना, पर्यटना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथारूप स्वाध्याय प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी । अतः इस प्रकार जानकर वह भिक्षु पूर्वोक्त प्रकार की मांस प्रधानादि पूर्वसंखडि या पश्चात्संखडि में संखडि की प्रतिज्ञा से जाने का मन में संकल्प न करे ।
वह भिक्षु या भिक्षुणी, भिक्षा के लिए गृहस्थ के यहाँ प्रवेश करते समय यह जाने कि