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नमो नमो निम्मलदंसणस्स
सूत्रकृत
अंगसूत्र - २ हिन्दी अनुवाद
5 श्रुतस्कन्ध- १ 5
अध्ययन- १ समय उद्देशक - १
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[१] बोध प्राप्त करो किसे कहा है ? किसे जान
[२] जो सचेतन या अचेतन पदार्थों में अल्प मात्र भी परिग्रह- बुद्धि रखता है या दूसरों के परिग्रह का समर्थन करता है, वह अपने वैर को बढ़ाता है ।
बन्धन को जानकर उसे तोड़ डालो | [प्रश्न] महावीर ने बंधन लेने से उसे तोड़ा जा सकता है ?
[३] जो प्राणियों का स्वयं घात करता है या दूसरों से घात करवाता है अथवा घात करने वाले का समर्थन करता है, वह अपने वैर को बढ़ाता है ।
[४] जो मनुष्य जिस कुल में जन्म लेता है या जिनके साथ रहता है, वह ममत्ववान, अज्ञानी एक दूसरे के प्रति मूर्छित होकर नष्ट होता रहता है ।
[५] धन और भाई-बहिन- ये सभी रक्षा नहीं कर सकते । जीवन के रहते कर्म - बन्धनों को तोड़ देना चाहिये ।
[६] कुछेक श्रमण-ब्राह्मण इन ग्रन्थियों का अतिक्रमण कर, परमार्थ को न जानने के कारण अभिमान करते हैं और वे मनुष्य कामभोग में आसक्त रहते हैं ।
[७] कुछैक दार्शनिक कहते हैं कि इस संसार में पाँच महाभूत हैं- १. पृथ्वी २. पानी अग्नि ४. वायु और ५: आकाश ।
३.
[८] ये पाँच महाभूत हैं । इनके एकीकरण से एक आत्मा उत्पन्न होती है और इनका विनाश होने पर देही का विनाश हो जाता है ।
[९] जैसे एक ही पृथ्वी- स्तूप विविध रूपों में दिखाई देता है, वैसे ही सम्पूर्ण लोक विज्ञ है, वह विविध रूपों में दिखाई देता है ।
[१०] कुछ दार्शनिक, जो प्रमाद और हिंसा में संलग्न हैं वे उक्त सिद्धान्त का प्रतिपादन करते हैं । वह अकेला ही पाप करके तीव्र दुःखों का अनुभव करता है ।
[११] चाहे बालक हो या पंडित, प्रत्येक की आत्मा पूर्ण है । उसकी आत्मा दिखाई दे रही है या नहीं - ऐसा कहने से उसका सत्त्व औपपातिक नहीं है ।
[१२] न पुण्य है, न पाप है, न ही इस लोक के अतिरिक्त अन्य कोई लोक है । शरीर के विनाश से देही का भी विनाश हो जाता है ।
[१३] आत्मा समस्त कार्य करती है, कराती है, किन्तु वह कर्ता नहीं है । अतः आत्मा अकर्ता है । ऐसा वे (अक्रियावादी) कहते हैं ।