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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[४८१] साधु या साध्वी यदि ऐसे वस्त्र को जाने जो कि अंडों से यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हैं तो उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक एवं अनेषणीय मान कर प्राप्त होने पर भी ग्रहण न करे । साधु या साध्वी यदि जाने के यह वस्त्र अंडों से यावत् मकड़ी के जालों सेतो रहित है, किन्तु अभीष्ट कार्य करने में असमर्थ है, अस्थिर है, या जीर्ण है, अध्रुव है, धारण करने के योग्य नहीं है, तो उस प्रकार के वस्त्र को अप्रासुक और अनेषणीय समझ कर मिलने पर भी ग्रहण न करे ।
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साधु या साध्वी यदि ऐसा वस्त्र जाने, जो कि अण्डों से, यावत् मकड़ी के जालों से रहित है, साथ ही वह वस्त्र अभीष्ट कार्य करने में समर्थ, स्थिर, ध्रुव, धारण करने योग्य है, दाता की रुचि को देखकर साधु के लिए भी कल्पनीय हो तो उस प्रकार के वस्त्र को प्रासुक और एषणीय समझ कर प्राप्त होने पर साधु ग्रहण कर सकता है ।
'मेरा वस्त्र नया नहीं है ।' ऐसा सोच कर साधु या साध्वी उसे थोड़े व बहुत सुगन्धित द्रव्य से यावत् पद्मराग से आघर्षित - प्रघर्षित न करे । 'मेरा वस्त्र नूतन नहीं है,' इस अभिप्राय से साधु या साध्वी उस मलिन वस्त्र को बहुत बार थोड़े-बहुत शीतल या उष्ण प्रासुक जल से एक बार या बार-बार प्रक्षालन न करे । 'मेरा वस्त्र दुर्गन्धित है', यों सोचकर उसे बहुत बार थोड़े-बहुत सुगन्धित द्रव्य आदि से आघर्षित - प्रघर्षित न करे, न ही शीतल या उष्ण प्रासुक जल से उसे एक बार या बार - बार धोए । यह आलापक भी पूर्ववत् है ।
[४८२] संयमशील साधु या साध्वी वस्त्र को धूप में कम या अधिक सुखाना चाहे तो वह वैसे वस्त्र को सचित्त पृथ्वी पर, स्निग्ध पृथ्वी पर, तथा ऊपर से सचित्त मिट्टी गिरती हो, तथा ऐसी पृथ्वी पर, सचित्त शिला पर, सचित्त मिट्टी के ढेले पर, जिसमें घुन या दीमक का निवास हो ऐसी जीवाधिष्ठित लकड़ी पर प्राणी, अण्डे, बीज, मकड़ी के जाले आदि जीवजन्तु हों, ऐसे स्थान में थोड़ा अथवा अधिक न सुखाए ।
संयमशील साधु या साध्वी वस्त्र को धूप में कम या अधिक सुखाना चाहे तो वह उस प्रकार के वस्त्र को ठूंठ पर, दरवाजे की देहली पर, ऊखल पर, स्नान करने की चौकी पर, इस प्रकार के और भी भूमि से ऊँचे स्थान पर जो भलीभाँति बंधा हुआ नहीं है, ठीक तरह से भूमि पर गाड़ा हुआ या रखा हुआ नहीं है, निश्चल नहीं है, हवा से इधर-उधर चलविचल हो रहा है, ( वहाँ, वस्त्र को ) आताप या प्रताप न दे ।
साधु या साध्वी यदि वस्त्र को धूप में थोड़ा या बहुत सुखाना चाहते हों तो घर की दीवार पर, नदी के तट पर, शिला पर रोड़े पत्थर पर, या अन्य किसी उस प्रकार के अंतरिक्ष (उच्च) स्थान पर जो कि भलीभाँति बंधा हुआ, या जमीन पर गड़ा हुआ नहीं है, चंचल आदि है, यावत् थोड़ा या अधिक न सुखाए । यदि साधु या साध्वी वस्त्र को धूप में थोड़ा या अधिक सुखाना चाहते हों तो उस वस्त्र को स्तम्भ पर, मंच पर, ऊपर की मंजिल पर, महल पर, भवन के भूमिगृह में, अथवा इसी प्रकार के अन्य ऊँचे स्थानों पर जो कि दुर्बद्ध, दुर्निक्षिप्त, कंपित, एवं चलाचल हो, थोड़ा या बहुत न सुखाए ।
साधु उस वस्त्र को लेकर एकान्त में जाए; वहाँ जाकर (देखे कि ) जो भूमि अग्नि से दग्ध हो, यावत् वहाँ अन्य कोई उस प्रकार की निरवद्य अचित्त भूमि हो, उस निर्दोष स्थंडिलभूमि का भलीभाँति प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके तत्पश्चात् यतनापूर्वक उस वस्त्र को थोड़ा या