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आचार-२/२/९/-/४९८
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अध्ययन- ९ निषीधिका - सप्तिका - २
[४९८] जो साधु या साध्वी प्रासुक - निर्दोष स्वाध्याय - भूमि में जाना चाहे, वह यदि ऐसी स्वाध्याय - भूमि को जाने, जो अण्डों, जीव जन्तुओं यावत् मकड़ी के जालों से युक्त हो तो उस प्रकार की निषीधिका को अप्रासुक एवं अनेषणीय समझ कर मिलने पर कहे कि मैं इसका उपयोग नहीं करूँगा । जो साधु या साध्वी यदि ऐसी स्वाध्यायभूमि को जाने, जो अंडों, प्राणियों, बीजों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त न हो, तो उस प्रकार की निधिका को प्रासु एवं एषणीय समझकर प्राप्त होने पर कहे कि मैं इसका उपयोग करूँगा । निषध के सम्बन्ध में यहाँ से लेकर उदक- प्रसूत कंदादि तक का समग्र वर्णन शय्या अध्ययन अनुसार
जानना ।
यदि स्वाध्यायभूमि में दो-दो, तीन-तीन, चार-चार या पांच-पांच समूह में एकत्रित होकर साधु जाना चाहते हों तो वे वहाँ जाकर एक दूसरे के शरीर का परम्पर आलिंगन न करें, न ही विविध प्रकार से एक दूसरे से चिपटें, न वे परस्पर चुम्बन करें, न ही दांतों और नखों से एक दूसरे का छेदन करें । यही उस भिक्षु या भिक्षुणी का आचार सर्वस्व है; जिसके लिए वह सभी प्रयोजनों, आचारों से तथा समितियों से युक्त होकर सदा प्रयत्नशील रहे और इसी को अपने लिए श्रेयस्कर माने । ऐसा मैं कहता हूँ ।
अध्ययन - १० उच्चारप्रस्रवण-सप्तिका-३
[४९९] साधु या साध्वी को मल-मूत्र की प्रबल बाधा होने पर अपने पादपुञ्छनक के अभाव में साधर्मिक साधु से उसकी याचना करे ।
साधु या साध्वी ऐसी स्थण्डिल भूमि को जाने, जो कि अण्डों यावत् मकड़ी के जालों से युक्त है, तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर मल-मूत्र विसर्जन न करे ।
साधु या साध्वी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो प्राणी, बीज, यावत् मकड़ी के जालों से रहित है, तो उस प्रकार के स्थण्डिल पर मल-मूत्र विसर्जन कर सकता है ।
साधु या साध्वी यह जाने कि किसी भावुक गृहस्थ ने निर्ग्रन्थ निष्परिग्रही साधुओं को देने की प्रतिज्ञा से एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से, या बहुत से साधर्मिक साधुओं के उद्देश्य से, अथवा एक साधर्मिणी साध्वी के उद्देश्य से या बहुत-सी साधर्मिणी साध्वियों के उद्देश्य सेस्थण्डिल, अथवा बहुत-से श्रमण ब्राह्मण, अतिथि, दरिद्र या भिखारियों को गिन-गिनकर उनके उद्देश्य से समारम्भ करके स्थण्डिल बनाया है तो इस प्रकार का स्थण्डिल पुरुषान्तरकृत हो या अपुरुषान्तरकृत, यावत् बाहर निकाला हुआ हो, अथवा अन्य किसी उस प्रकार के दोष से युक्त स्थण्डिल हो तो वहाँ पर मल-मूत्र विसर्जन न करे ।
यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो किसी गृहस्थ ने बहुत-से शाक्यादि श्रमण, ब्राह्मण, दरिद्र, भिखारी या अतिथियों के उद्देश्य से समारम्भ करके औद्देशिक दोषयुक्त बनाया है, तो उस प्रकार के अपुरुषान्तरकृत यावत् काम में नहीं लिया गया हो तो उस में या अन्य किसी एषणादि दोष से युक्त स्थण्डिल में मल-मूत्र विसर्जन न करे ।
यदि वह यह जान ले कि पूर्वोक्त स्थण्डिल पुरुषान्तरकृत यावत् अन्य लोगों द्वारा उपभुक्त है, और अन्य उस प्रकार के दोषों से रहित स्थण्डिल है तो साधु या साध्वी उस पर